Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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भ० अरनाथजी--वीरभद्र का वृत्तांत
३७३
--"मैं अपने कुल गौरव एवं शील की रक्षा के लिए स्त्रियों से बात नहीं करता।"
--"कुलीन व्यक्ति का प्रथम गुण दाक्षिण्यता है । आप दाक्षिण्यता से ही मुझे बताइए।"
"अभी तो समय हो चका है। अब में कल बतलाऊँगा।" इतना कह कर वह चला गया । दूसरे दिन उसने आगे की बात इस प्रकार कही;--
“वीरभद्र मन्त्रगुटिका से श्यामवर्ण वाला बन कर देशाटन करता हुआ सिंहलद्वीप पहुंचा।" इस प्रकार वह अनंगसुन्दरी सम्बन्धी वृत्तांत, समुद्री संकट तक कह कर रुक गया। अनंगसुन्दरी ने आग्रह पूर्वक पूछा--" भद्र ! अब वीरभद्र कहाँ है ?" "अब मेरे दरबार में जाने का समय हो गया है। शेष बात कल कहूँगा।"--इतना कह कर चला गया। तीसरे दिन उसने विद्याधर द्वारा बचाये जाने और रत्नप्रभा के साथ उपाश्रय तक आने की बात कही। रत्नप्रभा ने पूछा--"अब बुद्धदास कहाँ है ?" वामन ने कहा-- " शेष बात कल कही जायगी," और चला गया। तीनों महिलाओं को विश्वास हो गया कि हमारा पति एक ही है।"
महर्षि ने इतनी कथा कहने के बाद सागर सेठ से कहा--"यह वामन ही तुम्हारा जामाता है और यही उन तीनों स्त्रियों का पति है । अभी यह कला-प्रदर्शन की इच्छा से वामन बना हुआ है।" सागर सेठ, महात्मा को वन्दना कर के वामन के साथ उपाश्रय में आये। उन्होंने साध्वियों को वन्दना करने के बाद तीनों स्त्रियों से कहा--"तुम तीनों का पति यह वामन ही है।" एकान्त में जा कर वामन ने अपना रूप बदला। पहले वह श्याम वर्ण हो कर आया। अनंगसुन्दरी ने उसे पहिचान लिया। उसके बाद वह अपने मूल गौरवर्ण में आ गया। सेठ ने पूछा--"तुमने इतना प्रपंच क्यों किया ?" वीरभद्र ने कहा--" में तो सैर-सपाटे और कला-प्रदर्शन के लिए ही घर से चला था।"
दूसरे दिन भगवान् अरनाथ स्वामी ने वीरभद्र के पूर्वभव का वृत्तांत कहते हुए बताया कि--" में पूर्व के तीसरे भव में पूर्व-विदेह में राज्य का त्याग कर दीक्षित हो कर विचर रहा था। चार मास के तप का पारणा मैने रत्नपुर के सेठ जिनदास के यहाँ किया था । जिनदास आयु पूर्ण कर ब्रह्म देवलोक में गया । वहाँ से च्यव कर मनष्य-भव में समृद्धिवान् श्रावक हुआ। वहाँ धर्म की आराधना कर के अच्युत देवलोक में गया और वहाँ से च्यव कर वीरभद्र हुआ है। पुण्यानुबन्धी-पुण्य का यह फल है ।" भगवान् विहार कर गए। वीरभद्र ने चिरकाल तक भोग जीवन व्यतीत किया और संयम पालकर स्वर्ग में गया।
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