Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थङ्कर चरित्र
इस जम्बूद्वीप के दक्षिण भरतार्द्ध में चक्रपुर नाम का नगर था । वहाँ महाशिर नाम का महाप्रतापी राजा राज करता था । वह बुद्धि, कला और प्रतिभा में उस समय के अन्य राजाओं में सर्वोपरि था । उस राजा के 'वैजयंती' और 'लक्ष्मीवती' नाम की दो रानियाँ थी। वे रूप, गुण और अन्य विशेषताओं से विभूषित थी । मुनिराज सुदर्शनजी का जीव, सहस्रार देवलोक से च्यत्र कर महारानी वैजयंती के गर्भ में आया। महारानी ने चार महास्वप्न देखे । गर्भकाल पूर्ण होने पर एक सुन्दर पुत्र को जन्म दिया। योग्य वय में राजकुमार 'आनन्द' विद्या, कला एवं न्याय-नीति में पारंगत हुआ ।
प्रियमित्र मुनि का जीव, चौथे माहेन्द्र स्वर्ग से च्यव कर महारानी लक्ष्मीवती की कुक्षि में उत्पन्न हुआ । महारानी ने सात महास्वप्न देखे | जन्म होने पर पुत्र का नाम 'पुरुषपुंडरीक' दिया गया। वह भी विद्या और कला आदि में प्रवीण हो गया । आनन्द और पुरुषपुंडरीक में घनिष्ठ स्नेह था । दोनों अतिशय योद्धा और महान् शक्तिशाली थे । राजेन्द्रपुर के राजा उपेन्द्रसेन की अनुपम सुन्दरी कन्या राजकुमारी पद्मावती का विवाह राजकुमार पुरुषपुण्डरीक के साथ हुआ । त्रिखण्डाधिपति महाराजा बलि के पुण्य का उतार प्रारंभ हो कर पापोदय प्रकट होने वाला था । उसने पद्मावती के अनुपम रूप की प्रशंसा सुनी और उसे प्राप्त करने के लिए वह चढ़ आया । बलि को अनीतिपूर्वक आक्रमण करने के लिए आता हुआ जान कर राजकुमार आनन्द और पुरुषपुण्डरीक भी उसके सामने चढ़ आये । इन दोनों बन्धुओं के पुण्य का उदयकाल था । देवों ने राजकुमार आनन्द को हल आदि तथा पुरुषपुण्डरीक को शारंग धनुष आदि शस्त्र अर्पण किये। दोनों ओर की सेनाओं में युद्ध छिड़ गया । घमासान युद्ध में बलि की सेना ने भीषण प्रहार कर के शत्रु सेना के छक्के छुड़ा दिए | अपनी सेना को हताश हो कर मरती कटती और भागती हुई देख कर दोनों वीर योद्धा अपने शस्त्र ले कर आगे आये । राजकुमार पुरुषपुण्डरीक ने पांचजन्य शंख का नाद किया । उस महानाद के भीषण स्वर ने बलि की सेना के साहस को नष्ट कर दिया और भय भर दिया। आगे के सैनिक पीछे खिसकने लगे । पुरुषपुंडरीक ने इसके बाद शारंग धनुष का टंकार दिया। टंकार सुनते ही बलि की सेना भाग गई । अपनी सेना को रण क्षेत्र छोड़ कर भागती हुई देख कर, बलि स्वयं रणक्षेत्र में आया और भीषण बाण- वर्षा करने लगा । उधर बलि की बाण - वर्षा से अपना बचाव करते हुए राजकुमार पुरुषपुण्डरीक भी बलि पर बाणों की मार चला रहे थे । अपने बाणों और विशिष्ट अस्त्रों का उचित प्रभाव नहीं देख कर बलि ने चक्र धारण किया और उसे घुमा कर जोर से अपने शत्रु पर
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