Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 380
________________ म० अरनाथजी--वीरभद्र का वृत्तांत वीरभद्र, सेठ के घर रहने लगा । वह अपनी योग्यता, कला और विज्ञान की कुशलता से थोड़े ही दिनों में, नगरजनों में आदर पात्र हो गया । सेठ के एक पुत्री थी, जिसका नाम 'विनयवती' था । नगर के राजा रत्नाकर की पुत्री का नाम 'अनंगसुन्दरी' था । वह स्वभाव से ही पुरुष-द्वेषिनी थी। विनयवती उसके पास जाती रहती थी। एक दिन वीरभद्र ने विनयवती से पूछा- “बहिन ! तुम अन्तःपुर में क्यों जाती रहती हो?" --"राजकुमारी मेरी सखी है। उसके आग्रह से मैं उसके पास जाती हैं।" -" मैं भी राजकुमारी को देखने के लिए तुम्हारे साथ चलना चाहता हूँ।" - "नहीं भाई ! राजकुमारी पुरुष-द्वेषिनी है । वह छोटे बच्चे से भी द्वेष करती है । इसलिए मैं तुझे साथ कैसे ले जा सकती हूँ ?" ___ ---" मैं स्त्री-वेश में आऊँ और मुझे अपनी सखी को बतावे, तो क्या हर्ज है ? में एक बार उसे देखना चाहता हूँ।" विनयवती मान गई और वीरभद्र को अपना बढ़िया वेश एवं गहने पहना कर साथ ले गई । विनयवती ने राजकुमारी से वीरभद्र का परिचय कराया और कहा कि यह मेरी बहिन वीरमती है । अनंगसुन्दरी ने एक पटिये पर एक हंस का चित्र बनाया था। किन्तु हंसी (मादा) का चित्र जैसा चाहिये वैसा नहीं बना । उसका उद्देश्य विरह-पीड़ित हंसी बनाने का था, परन्तु उसमें उसके विरह-पीड़ित होने का भाव बराबर नहीं आ पाया था। वीरभद्र ने उस चित्र को सुधार कर उसमें उसके भाव को पूर्ण रूप से बताया। आँखों में आंसू, म्लान बदन, गरदन झुकी हुई और पंख शिथिल । इस प्रकार उसकी विरह-पीड़ित अवस्था स्पष्ट हो रही थी। अनंगसुन्दरी को वह चित्र बहुत पसन्द आया । उसने वीरमती से पूछा--"तुम्हें चित्रकला में निपुणता प्राप्त है । इसके सिवाय और कौनसी कला में तुम पारंगत हो?" वीरमती ने कहा--" मेरी कला का परिचय आपको धीरे-धीरे होता रहेगा।" वीरभद्र स्त्री-वेश में दूसरे दिन भी विनयवती के साथ राजकुमारी के पास गया। उस दिन राजकुमारी वीणा बजा रही थी। किन्तु वीणा का स्वर बराबर नहीं निकल रहा था। वीरभद्र ने कहा-'इस वीणा में मनुष्य का बाल अटक गया है। इसलिए इसका स्वर बिगड़ रहा है।' राजकुमारी आश्चर्य करने लगी। उसने पूछा--'तुमने कैसे जाना कि इसमें बाल फंस गया है ?'--' इसका स्वर ही बतला रहा है।' वीरमती बने हुए वीरभद्र ने वीणा खोल कर उसमें फंसा हुआ बाल निकाल कर बताया। अब वीणा निर्दोष स्वर निकाल रही थी। राजकुमारी को वीरमती की कला-प्रवीणता पर आश्चर्य हुआ। उसने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426