Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 357
________________ ३४४ तीर्थंकर चरित्र " जय हो, शरणागत-रक्षक महामानव नरेन्द्र मेघरथ की जय हो, विजय हो । आपकी गुणगाथा देवाधिपति ईशानेन्द्र महाराज ने दूसरे देवलोक की देव सभा में गाई । आप देवेन्द्र द्वारा प्रशंसित हैं। मैं भी उस देव सभा में था । मुझे आपकी प्रशंसा सुन कर, देवेन्द्र की बात पर विश्वास नहीं हुआ । इसलिए परीक्षा करने के लिए यहाँ आया । मार्ग में मैने इन दोनों पक्षियों को लड़ते हुए देखा, तो मैं उनमें प्रवेश कर आपके पास आया और आपकी महान् अनुकम्पा, शरणागत प्रतिपालकता एवं दृढ़ आत्मबल की परीक्षा की । इससे आपको कष्ट हुआ । मैं आपसे क्षमा चाहता हूँ । आप मुझे क्षमा करें ।" इस प्रकार देव ने निवेदन किया और राजेन्द्र को स्वस्थ बना कर स्वर्ग में चला Jain Education International wwwww गया । देव के चले जाने के बाद सामंतों ने महाराजा से पूछा-"l 'स्वामिन् ! यह कबूतर और बाज परस्पर वैर क्यों रख रहे हैं ? ये पूर्वभव में कौन थे ?" महाराजा मेघरथ, अवधिज्ञान से उनका पूर्वभव जान कर कहने लगे । " ये दोनों ऐरवत क्षेत्र के पद्मिनीखंड नगर के सेठ सागरदत्त के पुत्र थे । ये व्यापारार्थ विदेश गये । विदेश में इन्हें एक बहुमूल्य रत्न प्राप्त हुआ। उस रत्न को लेने के लिए वे नदी के किनारे लड़ने लगे । लड़ते-लड़ते वे दोनों नदी में गिर पड़े और मर कर पक्षी हुए । अब भी दोनों आपस में लड़ रहे हैं । अब उस देव का वृत्तांत सुनो । इस जम्बूद्वीप के पूर्व विदेह में रमणीय नाम का विजय है । उसमें शुभा नाम की नगरी है । स्तिमितसागर नाम का राजा वहाँ राज करता था । मैं पूर्व के पाँचवें भव में ' अपराजित' नाम का उनका पुत्र था और बलदेव पद पर अधिष्ठित था । यह दृढ़रथ उस समय मेरा छोटा भाई 'अनन्तवीर्य' नाम का वासुदेव था । उस समय दमितारि नाम का प्रतिवासुदेव था । उसकी कनकश्री कन्या के लिए हमने उसे युद्ध में मार डाला था । वह् भव भ्रमण करता हुआ सोमप्रभ नामक तापस का पुत्र हुआ। वह बाल-तप करता रहा और मर कर सुरूप नाम का देव हुआ। ईशानेन्द्र ने मेरी प्रशंसा की । उस प्रशंसा ने सुरूप देव की आत्मा में रहा हुआ पूर्वभव का वैर जाग्रत कर दिया । वह देव यहाँ आया और इन पक्षियों में अधिष्टित हो कर मेरी परीक्षा लेने लगा ।" महाराजा मेघरथ की बात सुन कर बाज और कबूतर को जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ। वे मूच्छित हो कर भूमि पर गिर पड़े। राज-सेवकों ने उन पर हवा की और पानी * यह वृत्तांत पृष्ट ३१६ पर देवें । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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