Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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मैं शांतिनाथ का जन्म
महाराजा से कही । स्वप्न सुन कर महाराज बड़े प्रसन्न हुए । उन्होंने कहा - ' महादेवी ! आपकी कुक्षि में कोई लोकोत्तम महापुरुष आया है। वह त्रिलोक पूज्य और परम रक्षक होगा ।' प्रातःकाल भविष्यवेत्ता -- स्वप्न - शास्त्रियों को बुलाया गया । उन्होंने स्वप्न फल बतलाते हुए कहा -'
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"महाराज ! आपके इक्ष्वाकु वंश को पहले आदि जिनेश्वर और आदि चक्रवर्ती, आदि लोकोत्तम महापुरुषों ने सुशोभित किया। अब फिर कोई चक्रवर्ती सम्राट अथवा धर्मचक्रवर्ती--तीर्थंकर पद को सुशोभित करने वाली महान् आत्मा का पदार्पण हुआ है । आप महान् भाग्यशाली हैं— स्वामी !"
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स्वप्न पाठकों का सत्कार कर के और बहुत सा धन दे कर बिदा किया | उस समय पहले से ही कुरु देश में महामारी फैल रही थी । उग्र रूप से रोगातंक फैल चुका था । उस व्यापक महामारी का शमन करने के लिए बहुत से उपाय किये, किन्तु सभी उपाय व्यर्थ गये । महारानी अचिरादेवी की कुझि में आये गर्भस्थ उत्तम जीव के प्रभाव से महामारी एकदम शान्त हो गई । सर्वत्र ही शान्ति व्याप्त हो गई ।
गर्भ स्थिति पूर्ण होने पर ज्येष्ठ मास के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी के दिन भरणी नक्षत्र में-- जब सभी ग्रह उच्च स्थान पर थे. पुत्र का जन्म हुआ । उस समय तीनों लोक में उद्योत हुआ और नारकी जीवों को भी कुछ देर के लिए सुख का अनुभव हुआ । दिशाकुमारियें आई, इन्द्र आये और मेगिरि पर जन्मोत्सव किया । महाराजा विश्वसेनजी ने भी जन्मोत्सव मनाया । पुत्र के गर्भ में आते ही महामारी एकदम शांत हो गई । इसलिए पुत्र का नाम 'शांतिनाथ' दिया गया । यौवनवय प्राप्त होने पर राजकुमार शांतिनाथ का अनेक राजकन्याओं के साथ विवाह किया। राजकुमार पच्चीस हजार वर्ष की वय में आये, तब महाराजा विश्वसेनजी ने राज्य का भार पुत्र को दे दिया और अपना आत्महित साधने लगे । श्री शांतिनाथजी यथाविधि राज्य का संचालन करने लगे और निकाचित कर्मों के उदय से रानियों के साथ भोग भोगने लगे। सभी रानियों में अग्र स्थान पर महारानी यशोमती । उसने एक रात्रि में स्वप्न में सूर्य के समान तेजस्वी ऐसे एक चक्र को आकाश से उतर कर मुख में प्रवेश करते हुए देखा । दृढ़रथ मुनि का जीव, अनुत्तर विमान से व्यव कर उनकी कुक्षि में उत्पन्न हुआ । महारानी ने स्वप्न की बात स्वामी से निवेदन की । महाराजा शांतिनाथजी अवधिज्ञान से युक्त थे । उन्होने कहा; -' देवी ! मेरे पूर्वभव का दृढ़रथ नाम का मेरा छोटा भाई सर्वार्थसिद्ध महाविमान से च्यव कर तुम्हारी कुक्षि आया है ।' गर्भकाल पूर्ण होने पर पुत्र का जन्म हुआ। स्वप्न में चक्र देखा था, इसलिए
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