Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 315
________________ तीर्थकर मात्र उससे उसके 'नन्दीभूति' और 'शिवभूति' नाम के दो पुत्र हुए । नन्दीभूति ज्येष्ठ पुत्र था। उनके यहाँ · कपिला' नामकी एक दासी थी। धरणीजट का उस दासी के साथ अनैतिक सम्बन्ध था। उस दासी के गर्भ से एक पुत्र का जन्म हुआ, जिसका नाम 'कपिल' रखा था । यशोधरा से उत्पन्न दोनों पुत्रों को तो धरणीजट, वेदाध्ययन कराने लगा, परन्तु कपिल को वह नहीं पढ़ाता था, क्योंकि वह दासी-पूत्र था। किंतू कपिल तीव्र बद्धि वाला था। जब धरणीजट अपने दोनों पुत्रों को पढ़ाता, तब वह पास बैठ कर देखता व सुनता रहता और मन-ही-मन उस पाठ को याद करता रहता। इस प्रकार मौनपूर्वक अध्ययन से वह भी वेदों का सांगोपांग ज्ञाता एवं पारंगत हो गया। अपने को योग्य एवं समर्थ जान कर, कपिल घर छोड़ कर विदेश चला गया और अपने गले में दो यज्ञोपवित धारण कर के अपने-आपको उत्तम ब्राह्मण बतलाने लगा। वह घूमता हुआ रत्नपुर नगर में आया और अपनी विद्वत्ता तथा जातीय-उच्चता बताताहुआ महोपाध्याय 'सत्यकी' के महाविद्यालय में आया । महापंडित सत्यकी, सभी प्रकार की विद्या और कला का भंडार था। कपिल इस विद्यालय में प्रतिदिन आ कर विद्यार्थियों एवं विद्वानों की शंकाओं का समाधान करता । उसके समझाने का ढंग हृदयस्पर्शी था। उसकी विशेषता से विद्यार्थी ही नहीं, आचार्य सत्यकी भी प्रभावित हुआ। स्वयं सत्यकी ने कपिल को इतने कठिन प्रश्न पूछे कि जिनका उत्तर वह स्वयं भी सरलतापूर्वक नहीं दे पाता था । कपिल के पांडित्य पर सत्यकी मुग्ध हो गया और उसे संमानपूर्वक अपने विद्यालय में नियुक्त कर दिया। इसके बाद कपिल, आचार्य का काम करने लगा और सत्यकी निश्चित हो कर रहने लगा। कपिल की भक्ति ने सत्यकी को बहुत प्रभावित किया। अन्त में सत्यकी ने अपनी उत्तम गुणों वाली सर्वांग सुन्दरी युवा पूत्री सत्यभामा' के लग्न भी कपिल के साथ कर दिये । इस लग्न-सम्बन्ध से प्रतिष्ठा में विशेष वृद्धि हुई। महोपाध्याय का जमाई होना साधारण बात नहीं थी। कपिल के दिन सुखपूर्वक व्यतीत होने लगे। कालान्तर में रात के समय कपिल नाटक देखने गया। वर्षा का समय था । लौटते समय वर्षा होने लगी। कपिल को अपने मूल्यवान् कपड़े भींगने का भय था । कुछ देर तो वह किसी घर की छाया में खड़ा रहा, किंतु वर्षा नहीं रुकी। उसका घर पहुंचना आवश्यक था। उसने सोचा-'अंधेरी रात में कौन देखता है, फिर क्यों मूल्यवान् वस्त्रों को भिगो कर खराब करूँ ?' उसने वस्त्र उतार कर बगल में दबा लिये और नंगधडंग ही भींगता हुआ घर पहुँचा, फिर कपड़े पहिन कर किंवाड़ खटखटाये । सत्यभामा उसकी राह देख रही थी। उसने किंवाड़ खोल कर शीघ्र ही पति के लिये दूसरे वस्त्र लाई, किन्तु पति के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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