Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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भ० शांतिनाथजी
भरत क्षेत्र के दक्षिणार्द्ध में रत्नपुर नाम का भव्य नगर था । श्रीसेन नाम का प्रतापी राजा राज करता था। वह स्वयं धर्मप्रिय, दानेश्वर एवं प्रजापालक था । दुष्टों और दुराचारियों को दण्ड देते हुए भी वह दयालु था । उस आदर्श नरेश के 'अभिनन्दिता' नाम की सुन्दर एवं शीलवती रानी थी। वह अपने उत्तम गुणों से मातृकुल, पितृकुल और श्वशुरकुल को सुशोभित एवं प्रशंसित करती थी । महाराज श्रीसेन के एक दूसरी रानी भी थी, जिसका नाम 'शिखिनन्दिता' था ।
कालान्तर में राजमहिषी अभिनन्दिता गर्भवती हुई। उसे स्वप्न अपनी गोद में चन्द्र और सूर्य खेलते दिखाई दिये । गर्भ स्थिति पूर्ण होने पर दो सुन्दर पुत्रों का जन्म हुआ । उनका नाम 'इन्दुसेन' और 'बिन्दुसेन' रखा। योग्य वय होने पर विद्याध्ययन कराया । वे सभी कलाओं में पारंगत हुए । उनकी इन्द्रियाँ सबल हुई और वे यौवन वय को प्राप्त हुए ।
दासी पुत्र कपिल
मगध देश के अचलग्राम में 'धरणीजट' नाम का एक ब्राह्मण रहता था। वह सांगोपांग चार वेद और अनेक शास्त्रों का ज्ञाता था और अपनी ज्ञाति में सर्वमान्य था । 'यशोभद्रा' नाम की सर्वाग सुन्दरी उसकी पत्नी थी। वह उत्तम गुणों से युक्त गृहलक्ष्मी थी ।
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