Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थङ्कर चरित्र
बिजली गिरेगी।'
भविष्यवेत्ता की बात सुन कर, क्रोधायमान बने हुए मेरे मुख्यमन्त्री ने उससे कहा ;
" महाराज पर बिजली पड़ेगी, तब तुझ पर क्या पड़ेगी ?" - -“मन्त्रीवर ! आप मुझ पर क्रोध क्यों करते हैं । मैने तो वही कहा जो भविष्य बतलाता है । महाराज को सावधान करने और धर्माचरण कर के सुकृत करने के लिए ही मैंने कहा है। किसी प्रकार की स्वार्थ-बुद्धि से नहीं कहा। फिर भी मैं कहता हूँ कि उस समय मुझ पर वसुधारा के समान स्वर्ण, माणिक्य, आभूषण और वस्त्रों की वृष्टि होगी"-- भविष्यवेत्ता ने कहा।
मैने मुख्यमन्त्री को समझाया कि भविष्यवेत्ता पर क्रोध नहीं करना चाहिए । ये तो यथार्थ कह कर सावधान करने वाले है। मैने उस भविष्यवेत्ता से पूछा:---
"तुमने भवितव्यता जानने की विद्या किस के पास से पढ़ी ?"
--"महाराज ! वासुदेव के देहावसान के बाद बलदेव प्रवजित हुए। उनके साथ मेरे पिता भी दीक्षित हो गए थे और पितृस्नेह के कारण में भी उनके साथ लघुवय में ही दीक्षित हो गया था । मैने उसी साधु अवस्था में ज्ञानी गुरुवर के पास से यह विद्या सीखी थी यद्यपि निमित्त-ज्ञान, अन्य परम्परा में भी है, तथापि पूर्णरूप से सत्य होने की विद्या तो एकमात्र जिनशासन में ही है । मैं लाभ-हानि, सुख-दुःख, जीवन-मरण और जय-पराजय, यों आठ प्रकार का भविष्य जानता हूँ । संयम का पालन करते हुए मैं यौवनवय में आया। हम सब विहार करते हुए 'पद्मिनी खंड' नामक नगर में गये। वहाँ मेरी फूफी रहती थी। उसके चन्द्रयशा नाम की यौवन-प्राप्त पुत्री थी। बालवय में मेरे साथ उसका वाग्दान हो चका था। किन्तु मेरे दीक्षा लेने के कारण विवाह नहीं हो सका । उस सुन्दरी को देखते ही मेमोदित हो गया। मोह के जोर से संयम भावना नष्ट हो गई। अन्त में मैने उस यवती के साथ लग्न कर लिए। संयमी अवस्था में गुरुदेव से प्राप्त भविष्य ज्ञान से मैं आपका भविष्य जान कर सावधान करने के लिए ही आया हूँ, स्वार्थ साधने के लिए नहीं।"
भविष्यवेत्ता की बात सुन कर सभी चिन्तित हो गए । एक मन्त्री ने कहा
“समद्र में बिजली नहीं गिरती, इसलिए महाराज सात दिन पर्यन्त जलयान में बैठ कर समुद्र में रहें।"
दूसरे मन्त्री ने कहा--"यह उपाय निरापद नहीं, वहाँ भी बिजली गिर सकती है । मेरे विचार से वैताढ्य पर्वत पर रहने से रक्षा हो सकती है। क्योंकि इस अवसर्पिणी काल
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