Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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भ० शांतिनाथजी-- भविष्य वाणी
मुनि के पास मुनि-दीक्षा ग्रहण कर ली । ‘सत्यभामा' (जो कपिल शर्मा की पत्नी थी और पति की कुलहीनता के आघात से रानियों के पास रहती थी तथा उन्हीं के साथ मर कर युगलिनी हुई थी) का जीव प्रथम स्वर्ग से च्यव कर, ज्योतिर्माला की कुक्षि से पुत्रीपने उत्पन्न हुई । उसका नाम 'सुतारा' रखा। महारानी अभिनन्दिता का जीव भी सौधर्म स्वर्ग से च्यव कर त्रिपृष्ट वासुदेव की स्वयंप्रभा रानी के गर्भ से पुत्रपने जन्मा। 'श्रीविजय' उसका नाम दिया गया। इसका परिणय सुतारा के साथ हुआ। श्रोविजय के छोटे भाई का नाम 'विजयभद्र' था। शिखिनन्दिता रानी का जीव भी वासुदेव की स्वयंप्रभा महारानी की कुक्षि से 'ज्योतिप्रभा' नाम की पुत्रीपने उत्पन्न हुआ। इसका विवाह अर्ककीर्ति के पुत्र अमिततेज से हुआ।
सत्यभामा ब्राह्मणी का जो ‘कपिल ' नाम का पति था, वह तिर्यंचादि गति में चिरकाल परिभ्रमण करता हुआ मनुष्य-जन्म पा कर चमरचंचा नगरी का 'अशनिघोष' नाम का विद्याधरों का राजा हआ।
एक बार रथनूपुर चक्रवाल नगर के उद्यान में श्री अभिनन्दन, जगनन्दन और ज्वलनजटी मुनिवर पधारे । महाराज अर्ककीर्ति ने अपने पिता मुनि और उनके गुरु को वन्दना की, धर्मोपदेश सुना और वैराग्य उत्पन्न होने पर अपने पुत्र अमिततेज को राज्याधिकार दे कर दीक्षित हो गया ।
भविष्य वाणी
त्रिपुष्ट वासुदेव के मरने पर युवराज श्रीविजय राज्यासीन हुआ। कालान्तर में महाराजा अमिततेज, पत्नी ज्योतिप्रभा के साथ अपनी बहिन सुतारा और बहनोई श्रीविजय से मिलने के लिए पोतनपुर आये। उन्होंने देखा कि पोतनपुर नगर, भीतर और बाहर से पूर्णरूप से सजाया गया है। नरेश अपनी बहिन और बहनोई से मिल कर बहुत प्रसन्न हए । श्रीविजय ने अमिततेज का बहुत सत्कार किया। दोनों सिंहासन पर बैठे। अमिततेज ने श्रीविजय से पूछा; ---
"अभी कौन-सा उत्सव हो रहा है, जिसके लिए यह तय्यारी हुई है ?"
--" आठ दिन पूर्व यहां एक भविष्यवेत्ता आया था । उसने कहा था कि--"मैं आपके हित के लिए यह सूचना देने के लिए आया हूँ कि आज के सातवें दिन राजा पर
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