Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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भ० विमलनाथजी - बोधि- दुर्लभ भावना
ऐसा रंक भी उस चक्रवर्ती सम्राट से अधिक सम्पत्तिशाली है ।
जिसे बोधि-रत्न प्राप्त हो गया, वह इस संसार के प्रति कभी राग नहीं करता और ममत्व रहित हो कर मुक्ति मार्ग की आराधना करता है ।
अकामनिर्जरारूपात्पुण्याज्जंतोः प्रजायते ।
स्थावरत्वात्त्रसत्वं वा तिर्यक्त्वं वा कथंचन । १ ॥ मनुष्यमायदेशश्च जातिः सर्वाक्षपाटवम् ।
"
आयुश्च प्राप्यते तत्र, कथंचित् कर्मलाघवात् ॥ २ ॥ प्राप्तेषु पुण्यतः श्रद्धा, कथक श्रवणेष्वपि । तत्त्वनिश्चयरूपं तद् बोधिरत्नं सुदुर्लभम् ॥ ३ ॥
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वास्तव में बोधि रत्न - तत्त्व की विशुद्ध समझ, उस पर श्रद्धा, रुचि और प्रतीति होना महान् दुर्लभ है—– “सद्धा परमदुलहा " इस आगम-वाणी को ध्यान में रख कर मिथ्यात्व रूपी आकर्षक डाकू से इस महारत्न की रक्षा करनी चाहिये ।
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भगवान् का उपदेश सुन कर अनेक भव्यात्माएँ, मोक्षमार्ग की पथिक बनी । 'मंदर' आदि ५६ गणधर हुए* । ग्रामानुग्राम विहार करते हुए भगवान् द्वारिका पधारे । समवसरण की रचना हुई । वासुदेव और बलदेव, भगवान् को वन्दना करने आये । भगवान् का धर्मोपदेश सुन कर स्वयंभू वासुदेव ने सम्यक्त्व लाभ किया और भद्र बलदेव ने श्रावकपन स्वीकार किया ।
भगवान् विमलनाथ प्रभु के ६८००० साधु, १००८०० साध्वियें, ११०० चौदह पूर्वधर, ४८०० अवधिज्ञानी, ५५०० मनःपर्यवज्ञानी, ५५०० केवलज्ञानी, ९००० वैक्रियलब्धिधारी, २०८००० श्रावक और ४२४००० श्राविकाएँ हुई ।
केवलज्ञान होने के बाद दो वर्ष कम पन्द्रह लाख वर्ष तक भगवान् पृथ्वी पर विहार करते हुए विचरते रहे । फिर निर्वाण-काल निकट आने पर सम्मेदशिखर पर पधारे और छःहजार साधुओं के साथ अनशन किया। एक मास का अनशन पूर्ण कर आषाढ़ कृष्णा सप्तमी को पुष्य नक्षत्र में मोक्ष पधारे ।
भगवान् पन्द्रह लाख वर्ष कुमार अवस्था में, तीस लाख वर्ष तक राज्याधिपति और पन्द्रह लाख वर्ष का त्यागी जीवन व्यतीत कर, कुल साठ लाख वर्ष का पूर्ण आयु भोग
* ग्रंथकार ५७ गणधर बतलाते हैं ।
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