Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
भ० अनंतनाथजी - धर्मदेशना
I
भगवान् के 'यश' आदि पचास गणधर हुए। भगवान् विहार करते हुए द्वारिका पधारे। पुरुषोत्तम वासुदेव आदि भगवान् को वन्दन करने आये । देशना सुनी । वासुदेव सम्यक्त्व हुए, बलदेव व्रतधारी श्रावक हुए । कई भव्यात्माएँ दीक्षित हुई । बहुतों ने श्रावक व्रत लिया तथा बहुत से सम्यक्त्वी बने ।
भगवान् अनंतनाथ स्वामी के ६६००० साधु, ६२००० साध्वियाँ, ९०० चौदह पूर्वधर, ४३०० अवधिज्ञानी, ५००० मनः पर्यवज्ञानी, ५००० केवलज्ञानी, ८००० वैक्रिय लब्धि धारी, ३२०० वादलब्धि वाले, २०६००० श्रावक और ४१४००० श्राविकाएँ हुई । भगवान् तीन वर्ष कम साढ़े सात लाख वर्ष तक सयोगी केवलज्ञानी के रूप में विचरते रहे और मोक्ष-काल निकट जान कर समेदशिखर पर्वत पर सात हजार मुनियों के साथ पधार कर अनशन किया। एक मास के बाद चैत्र शुक्ला पंचमी को पुष्य नक्षत्र में प्रभु मोक्ष पधारे । प्रभु कुमार अवस्था में साढ़े सात लाख वर्ष, राज्याधिपति रूप में पन्द्रह लाख वर्ष और संयम-पर्याय में साढ़े सात लाख वर्ष रहे । कुल आयु तीस लाख वर्ष का था ।
पुरुषोत्तम वासुदेव अपने तीस लाख वर्ष की आयु में उग्र पापकर्म कर के छठी नरक में गये । सुप्रभ बलदेव अपने भाई वासुदेव की मृत्यु के बाद विरक्त हो कर दीक्षित हो गए और चारित्र का पालन कर के कुल आयु ५५००००० वर्ष का पूर्ण कर के मोक्ष पधारे ।
Jain Education International
२६९
चौदहवें तीर्थंकर भगवान्
।। अनंतनाथजी का चरित्र सम्पूर्ण |
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org