Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थङ्कर चरित्र
हैं, वे भी एक लोभ के अंश मात्र से पतित हो जाते हैं । थोड़े से धन के लोभ से दो सहोदर भाई, कुत्ते के समान आपस में लड़ते हैं । ग्राम्यजन, अधिकारी वर्ग और राजा, खेत गाँव और राज्य की सीमा के लोभ से पारस्परिक सौहार्द भाव को छोड़ कर एक दूसरे से वैर रखते हैं ।
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लोभी मनुष्य, नाटक करने में भी बड़े ही कुशल होते हैं । स्वामी या अधिकारी को प्रसन्न करने के लिए, मन में हर्ष, शोक, द्वेष एवं हास्य का कारण नहीं होने पर भी, उनके सामने नट के समान हर्ष - शोकादि बतलाते हैं ।
दूसरे खड्डे तो पूरने से भर जाते हैं, किन्तु लोभ का खड्डा इतना गहरा और विचित्र है कि इसे जितना भरा जाय, उतना ही अधिक गहरा होता जाता है । ऊपर से समुद्र में जल डालने से वह परिपूर्ण नहीं होता । यदि देवयोग या अन्य कारण से समुद्र भी परिपूर्ण रूप से भर जाय, किन्तु लोभ रूपी महासागर तो ऐसा है कि तीन लोक का राज्य मिल जाय, तो भी पूरा नहीं होता । क्या इस जीव ने कभी भोजन नहीं किया ? बढ़िया वस्त्र नहीं पहने ? विषयों का सेवन नहीं किया और धन-सम्पत्ति का संचय नहीं किया ? किया, अनन्त बार किया, किन्तु लोभ का अंश कम नहीं किया । वह तो बढ़ता ही रहा । यदि लोभ का त्याग कर दिया, तो फिर तप करने की आवश्यकता नहीं रहती ( क्योंकि लोभ का त्याग कर देने वाला तो स्वयं पवित्र आत्मा है उसकी मुक्ति तो होती ही है) और जिसने लोभ का त्याग नहीं किया, तो उसे भी तप करने की आवश्यकता नहीं ( क्योंकि उसका तप भी तृष्णा की पूर्ति के लिए ही होता है । उस तप से निदानादि द्वारा ऐसी स्थिति प्राप्त होती है कि जिसके कारण भविष्य में वह नरकादि दुःखों का निर्माण कर लेता है) ।
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समस्त शास्त्रों का सार यही है कि--" बुद्धिमान् मनुष्य, लोभ को त्यागने का ही प्रयत्न करे ।" जिसके हृदय में सुमति का निवास होता है, वह लोभ रूपी महासागर की चारों ओर फैलती हुई प्रचण्ड तरंगों पर, संतोष का सेतु बाँध कर रोक देता है । जिस प्रकार मनुष्यों में चक्रवर्ती और देवों में इन्द्र सर्वश्रेष्ठ है, उसी प्रकार समस्त गुणों में सन्तोष महान् गुण है ।
सन्तोषी मुनि और असन्तोषी चक्रवर्ती के सुख-दुःख की तुलना की जाय, तो दोनों
* ग्यारहवें गुणस्थान की स्थिति पूर्ण होते ही दबे हुए मोह में से सब से पहले सूक्ष्म लोभ का उदय होता है ।
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