Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थङ्कक चरित्र
महारानी ने चौदह महास्वप्न देखे । वैशाख-कृष्णा त्रयोदशी की रात्रि में पुष्प-नक्षत्र में पुत्र का जन्म हुआ । नियमानुसार देव देवियों और इन्द्रों ने तीर्थंकर का जन्मोत्सव किया। जब पुत्र गर्भ में थे, तब महाराजा सिंहसेन ने शत्रुओं के अनन्त बल युक्त मानी जाने वाली सेना को भी जीत लिया था। इसे गर्भ का प्रताप मान कर पुत्र का नाम 'अनन्तजित' दिया । यौवनवय में विवाह हुआ और साढ़े सात लाख वर्ष बीतने पर पिता ने राज्य का
गर दे दिया। पन्द्रह लाख वर्ष तक राज्य का संचालन किया। इसके बाद आपके मन में संसार का त्याग कर मोक्ष के महामार्ग पर चलने की इच्छा हुई । लोकान्तिक देवों ने आ कर, संसार का त्याग कर धर्म-तीर्थ प्रवर्तन करने की प्रार्थना की । वर्षीदान दिया। वैशाख-कृष्णा चतुर्दशी को रेवती-नक्षत्र में बेले के तप से एक हजार राजाओं के साथ, महाराजा अनंतनाथ ने सामायिक चारित्र ग्रहण किया।
वासुदेव चरित्र
जम्बूद्वीप के पूर्व विदेह में नन्दपुरी नाम की एक नगरी थी। 'महाबल' नाम का . महाबली राजा था । कालान्तर में वह संसार के प्रपंच से विरक्त हो गया और ऋषभ' नाम के मुनिवर के चरणों में दीक्षित हो गया । शुद्धता एवं भावपूर्वक संयम की आराधना करते हुए महाबल मुनि, आयु पूर्ण कर 'सहस्रार' देवलोक में देव हुए।
जम्बूद्वीप के भरत-क्षेत्र में 'कोसम्बो' नाम की नगरी थी। 'समुद्रदत्त' वहाँ का प्रतापशाली नरेश था । 'नन्दा' नाम की अनुपम रूप सुन्दरी उसकी रानी थी। एक समय समुद्रदत्त का मित्र, मलयभूमि का राजा चण्डशासन वहाँ आया । समुद्रदत्त ने उसका सगे भाई के समान बड़े हर्ष और उत्साहपूर्वक स्वागत किया। वहाँ रूपसुन्दरी नन्दा रानी, चण्डशासन की दृष्टि में आ गई। वह उसे देखते ही चकित रह गया। उसके मन में विकार जाग्रत हो गया- इतना अधिक कि उसकी दशा ही बदल गई । वह चिंतित, स्तब्ध एवं विक्षुब्ध हो गया। उसके शरीर में पसीना आ गया और घबड़ाहट उत्पन्न हो गई । वह नन्दा रानी को अंकशायिनी बनाने के लिए व्यग्र हो गया। वह रात को सोया, परन्तु उसे नींद नहीं आई । वह तड़पता ही रहा । अब वह वहीं रह कर नन्दारानी को प्राप्त करने के उपाय सोचने लगा । वह मित्र के रूप में शत्रु बन कर समुद्र दत्त के विरुद्ध योजना बनाने लगा और एक दिन समुद्रदत्त की अनुपस्थिति में छल कर के वह दुष्ट, नन्दा का हरण कर के
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