Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थङ्कर चरित्र
जिनेश्वरों ने जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आश्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध और मोक्ष, ऐसे नौ तत्त्व कहे हैं ।
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सब से प्रथम तत्त्व जीव है। इसके सिद्ध और संसारी ऐसे दो भेद हैं । ये सभी अनादिनिधन और ज्ञान-दर्शन लक्षण वाले हैं। इनमें जो मुक्त जीव हैं, वे सभी एक ही स्वभाव वाले, जन्म-मरणादि क्लेशों से रहित और अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त आत्मशक्ति और अनन्त आनन्द से व्याप्त हैं । संसारी जीव, स्थावर और त्रस ऐसे दो भेदों से युक्त हैं । ये दोनों पर्याप्त और अपर्याप्त हैं । पर्याप्त दशा की कारणभूत छह पर्याप्तियें है । यथा१ आहार पर्याप्त २ शरीर पर्याप्ति ३ इन्द्रिय पर्याप्ति ४ श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति ५ भाषा पर्याप्ति और ६ मनः पर्याप्ति ।
इन छह में से एकेन्द्रियों को चार पर्याप्ति, विकलेन्द्रिय जीवों (असंज्ञी पंचेंद्रिय सहित ) को पाँच और संज्ञी पंचेंद्रिय को छ: पर्याप्ति अनुक्रम से होती है ।
पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय, वायुकाय और वनस्पतिकाय, ये एकेन्द्रिय जीव, स्थावर होते हैं । इनमें से पृथ्वीकाय से लगा कर वायुकाय तक के चार, सूक्ष्म और बादर ऐसे दो भेद वाले हैं और वनस्पतिकाय, प्रत्येक और साधारण ऐसे दो भेद वाली है । इसमें प्रत्येक तो बादर ही है और जो साधारण है, वह सूक्ष्म भी है और बादर भी ।
त्रस जीव चार प्रकार के हैं- १ बेइन्द्रिय २ तेइन्द्रिय ३ चौरीन्द्रिय और ४ पंचेंद्रिय । इनमें से बेइन्द्रिय से चौरीन्द्रिय तक के जीव तो असंज्ञी हैं और पंचेंद्रिय जीव असंज्ञी भी हैं और संज्ञी भी हैं। संज्ञी वही है - जो शिक्षा, उपदेश और आलाप को जानता है और मानसिक प्रवृत्ति से युक्त है । इसके विपरीत बिना मन के जीव असंज्ञी हैं । इन्द्रियाँ पाँच हैं- -१ स्पर्श २ रसना ३ नासिका ४ नेत्र और ५ श्रवण । इनके विषय अनुक्रम से १ स्पर्श २ रस ३ गंध ४ रूप और ५ शब्द हैं ।
बेइन्द्रिय जीव -- कृमि, शंख, गंडीपद, जोंक और शीप आदि । तेइन्द्रिय जीव - - युका, खटमल मकोड़े और लीख आदि । चौरीन्द्रिय -- पतंग, मक्षिका, भ्रमर और डांस आदि ।
पंचेंद्रिय -- जल, स्थल और आकाशचारी, ये तीन प्रकार के तिर्यञ्च जीव है और नारकी, मनुष्य और देवता भी पञ्चेन्द्रिय हैं ।
प्राण-- १-५ श्रोतेन्द्रियादि पाँच इन्द्रिय ६ श्वासोच्छ्वास ७ आयुष्य ८ मनोबल ९ वचनबल और १० कायबल । ये दस प्राण हैं । १ कायबल २ आयुष्य ३ उच्छ्वास और
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