Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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भ. अनंतनाथजी--वासुदेव चरित्र
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ले गया । समुद्र दत्त को इस मित्र-घातक कृत्य से बड़ा दुःख हुआ । उसने नन्दा की बहुत खोज कराई, किन्तु पता नहीं लगा। वह संसार से विरक्त हो कर श्री श्रेयांस मुनिराज के समीप दीक्षित हो गया और चारित्र तथा तप की उग्र आराधना करने लगा। संयमी साधु बन जाने पर भी उसके मन में से मित्र द्वारा हुए विश्वासघात और अपमान का शूल नहीं निकल सका। उसने भविष्य में चण्डशासन का वध करने का निदान कर लिया। इस प्रकार अपरिमित फलदायक तप का दुरुपयोग कर, परिमित कुफल वाला बना दिया और मृत्यु पा कर सहस्र र देवलोक में देव हुआ।
चंडशासन भी मृत्यु पा कर भव-भ्रमण करता हुआ और भीषण दुःख भोगता हुआ मनुष्य-भव पाया और भरत-क्षेत्र में पृथ्वीपुर नगर के विलास राजा की गुणवती रानी की कुक्षि में उत्पन्न हुआ। उसका नाम 'मधु' रहा । वह उस समय का अद्वितीय महाबली योद्धा हुा। उसने अपने बाहुबल से दक्षिण भरत के सभी राज्यों को जीत कर अपने अधिकार में कर लिया। वह चौथा प्रतिवासुदेव हुआ। उसके ‘कैटभ' नाम का भाई भी था । वह भी योद्धा और प्रचण्ड शक्तिशाली था ।
द्वारिका नगरी में ' सोम' नाम का गुणवान् राजा था। उसके 'सुदर्शना' और 'सीता' नाम की दो रानियाँ थी। महाबल मुनिराज का जीव, सहस्रार देवलोक से च्यव कर सुदर्शना रानी की कुक्षि में आया । रानी ने चार महास्वप्न देखे । जन्म होने पर पुत्र का 'सुप्रभ' नाम दिया। कालान्तर में समुद्रदत्त मुनि का जीव भी सहस्रार देव का आयु पूर्ण कर सीतादेवी की कुक्षि में उत्पन्न हुआ । रानी ने वासुदेव के आगमन को सूचित करने वाले सात महास्वप्न देखे । जन्म होने के बाद विधिपूर्वक पुत्र का 'पुरुषोत्तम' नाम दिया। दोनों भाइयों में अपार स्नेह था। वे समवयस्क मित्र के समान साथ ही खेलते और साथ ही रहते । उन्होंने सभी प्रकार की कला सीख ली। दोनों भाई युद्ध-कला में प्रवीण हो गए और महान् बलशाली हुए । देवों ने बड़े भाई सुप्रभ को हल और पुरुषोत्तम को सारंग धनुष आदि प्रभावशाली आयुध भेंट किये।
कलह एवं कौतुक करने में कुशल ऐसे नारदजी, इन युगल-बन्धुओं का बल और पराक्रम देख कर चकित हुए। वे भ्रमण करते हुए प्रति वासुदेव मधु के पास आये । महाराजा मधु ने नारदजी का आदर सहित स्वागत किया और कहने लगा;--
“मैं इस दक्षिण भरत-क्षेत्र का एकमात्र स्वामी हूँ । मैने यहाँ के सभी राजाओं को जीत कर अपने आधीन कर लिया। मागध, वरदाम और प्रभास, ये तीर्थ भी मेरे शासन
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