Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थकर चरित्र
जिन्हें सद्भाग्य से ऐसे विश्वोत्तम धर्म की प्राप्ति हुई है, उन्हें इससे अधिकाधिक लाभ प्राप्त कर जीवन सफल बनाना चाहिए ।"
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भगवान् ने तीर्थ स्थापना की । 'सूक्ष्म' आदि ६६ गणधर हुए। ग्रामानुग्राम विचरते हुए प्रभु द्वारिका नगरी के उद्यान में पधारे। द्विपृष्ट वासुदेव, भगवान् को वंदना करने आये । भगवान् की अमोघ देशना सुन कर कई भव्यात्माओं ने संसार का त्याग कर, निग्रंथप्रव्रज्या स्वीकार की। कई ने देशविरति ग्रहण की और वासुदेव - बलदेव आदि बहुतजनों ने सम्यक्त्व स्वीकार कर मिथ्यात्व का त्याग किया ।
भगवान् वासुपूज्य स्वामी के ७२००० साधु एक लाख साध्वियें १२०० चौदह पूर्वधर, ५४०० अवधिज्ञानी, ६१०० मनः पर्यवज्ञानी, ६००० केवलज्ञानी, १०००० वैक्रेयलब्धिधारी, ४७०० वादी, २१५००० श्रावक और ४३६००० श्राविकाएँ हुई । भगवान् एक मास कम ५४००००० वर्ष तक केवल पर्याय युक्त तीर्थंकर रहे | आयुष्य समाप्ति का समय निकट आने पर भगवान् चम्पा नगरी पधारे । ६०० मुनियों के साथ अनशन स्वीकार किया और एक मास के बाद मोक्ष प्राप्त किया ।
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प्रभु १८००००० वर्ष कुमार अवस्था में और ५४००००० वर्ष श्रमण-पर्याय में, यों कुल ७२००००० वर्ष का आयु भोगा । देवों ने प्रभु का निर्वाण महोत्सव किया ।
दूसरे वासुदेव, महा आरम्भ और महा परिग्रह मुक्त और देव जैसे भोग भोग कर, आयु पूर्ण होने पर, छठी नरकभूमि में उत्पन्न हुए । कुमारपन में ७५००० वर्ष, ७५००० मंडलिक राजापने, १०० वर्ष दिग्विजय में और ७२४६६०० वर्ष वासुदेवपने रहे । कुल आयु ७४००००० वर्ष का भोगा । वासुदेव की मृत्यु के बाद, संसार से विरक्त हो कर विजय बलदेव, श्री विजयसिंह आचार्य के समीप दीक्षित हुए और कर्म क्षय कर के मोक्ष प्राप्त किया ।
बारहवें तीर्थंकर
भगवान्
॥ वासुपूज्यजी का चरित्र सम्पूर्ण ॥
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