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________________ २४८ तीर्थकर चरित्र जिन्हें सद्भाग्य से ऐसे विश्वोत्तम धर्म की प्राप्ति हुई है, उन्हें इससे अधिकाधिक लाभ प्राप्त कर जीवन सफल बनाना चाहिए ।" mamanmar भगवान् ने तीर्थ स्थापना की । 'सूक्ष्म' आदि ६६ गणधर हुए। ग्रामानुग्राम विचरते हुए प्रभु द्वारिका नगरी के उद्यान में पधारे। द्विपृष्ट वासुदेव, भगवान् को वंदना करने आये । भगवान् की अमोघ देशना सुन कर कई भव्यात्माओं ने संसार का त्याग कर, निग्रंथप्रव्रज्या स्वीकार की। कई ने देशविरति ग्रहण की और वासुदेव - बलदेव आदि बहुतजनों ने सम्यक्त्व स्वीकार कर मिथ्यात्व का त्याग किया । भगवान् वासुपूज्य स्वामी के ७२००० साधु एक लाख साध्वियें १२०० चौदह पूर्वधर, ५४०० अवधिज्ञानी, ६१०० मनः पर्यवज्ञानी, ६००० केवलज्ञानी, १०००० वैक्रेयलब्धिधारी, ४७०० वादी, २१५००० श्रावक और ४३६००० श्राविकाएँ हुई । भगवान् एक मास कम ५४००००० वर्ष तक केवल पर्याय युक्त तीर्थंकर रहे | आयुष्य समाप्ति का समय निकट आने पर भगवान् चम्पा नगरी पधारे । ६०० मुनियों के साथ अनशन स्वीकार किया और एक मास के बाद मोक्ष प्राप्त किया । Jain Education International प्रभु १८००००० वर्ष कुमार अवस्था में और ५४००००० वर्ष श्रमण-पर्याय में, यों कुल ७२००००० वर्ष का आयु भोगा । देवों ने प्रभु का निर्वाण महोत्सव किया । दूसरे वासुदेव, महा आरम्भ और महा परिग्रह मुक्त और देव जैसे भोग भोग कर, आयु पूर्ण होने पर, छठी नरकभूमि में उत्पन्न हुए । कुमारपन में ७५००० वर्ष, ७५००० मंडलिक राजापने, १०० वर्ष दिग्विजय में और ७२४६६०० वर्ष वासुदेवपने रहे । कुल आयु ७४००००० वर्ष का भोगा । वासुदेव की मृत्यु के बाद, संसार से विरक्त हो कर विजय बलदेव, श्री विजयसिंह आचार्य के समीप दीक्षित हुए और कर्म क्षय कर के मोक्ष प्राप्त किया । बारहवें तीर्थंकर भगवान् ॥ वासुपूज्यजी का चरित्र सम्पूर्ण ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001915
Book TitleTirthankar Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1976
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size8 MB
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