Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थकर चरित्र
चतुर्विध संघ के अवर्णवाद बोलना, तिरस्कार करना और सदाचार की निंदा करना, यह-जुगुप्सा-मोहनीय के आस्रव हैं ।
ईर्षा, विषयों में लोलुपता, मृषावाद, अतिवक्रता और परस्त्री-गमन में आसक्तिये स्त्रीवेद बन्ध के आस्रव हैं।
___ स्वस्त्री में संतोष, ईर्षा रहित--भद्र स्वभाव, कषायों की मन्दता, प्रकृति की सरलता और सदाचार का पालन--ये पुरुषवेद के आस्रव हैं ।
स्त्री और पुरुष, दोनों को चुम्बनादि अनंग-सेवन, उग्र कषाय, तीव्र कामेच्छा, पाखंडीपन और स्त्री के व्रत का भंग करना--ये नपुंसकवेद बन्धन के आम्रव हैं ।
साधुओं की निन्दा करना, धर्मिष्ठ लोगों के लिए बाधक बनना, जो मद्य-मांसादि के सेवन करने वाले हैं, उनके सामने मद्य-मांसादि भक्षण की प्रशंसा करना, देश-विरत श्रावक के लिए बार-बार अन्तराय उत्पन्न करना, अविरत हो कर स्त्री आदि के गुणों का व्याख्यान करना, चारित्र को दूषित करना और दूसरों के कषाय तथा नोकषाय की उदीरणा करना--ये चारित्र-मोहनीय कर्म बाँधने के मुख्य आस्रव हैं।
पंचेन्द्रिय जीवों का वध, महान् आरम्भ और महा परिग्रह, अनुकम्पा रहित होना, मांस-भक्षण, स्थायी वैर-भाव, रौद्रध्यान, अनन्तानुबन्धी कषाय, कृष्ण नील और कापोत लेश्या, असत्य-भाषण, परद्रव्य हरण, बार-बार मैथुन सेवन और इन्द्रियों के वशीभूत हो जाना, ये नरक-गति के आयुष्य कर्म के आस्रव हैं।
उन्मार्ग का उपदेश, सन्मार्ग का नाश गुप्ततापूर्वक धन का रक्षण, आर्तध्यान, शल्ययुक्त हृदय, माया (कपट) आरम्भ-परिग्रह, शील एवं व्रत को दूषित करना, नील और कापोत लेश्या और अप्रत्याख्यानी कषाय-ये तियंच-गति का आयुष्य बाँधने के आस्रव हैं।
अल्प परिग्रह तथा अल्प आरम्भ, स्वभाव की कोमलता और सरलता, कापोत और पीत लेश्या (तेजो लेश्या), धर्मध्यान में अनुराग, प्रत्याख्यानी कषाय, मध्यम परिणाम, दान देने की रुचि, देव और गुरु की सेवा, पूर्वालाप (आने वाले का पधारो' आदि से पहले से आदरयुक्त बोलना) प्रियालाप, प्रेमपूर्वक समझाना, लोक-समूह में मध्यस्थता--ये मनुष्य-गति आयुष्य बन्धन के आस्रव हैं।
सराग-संयम, देशसंयम, अकामनिर्जरा, कल्याणमित्र (सुगुरु) का परिचय, धर्म
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