Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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भ० शीतलनाथ जी- -धर्मदेशना
यः कर्मपुद्गलादानच्छेदः स द्रव्य-संवरः । भवहेतु क्रियात्यागः स पुनर्भाव-संवरः ॥ २ ॥
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येन येनह्युपायेन रुध्यते यो य आश्रवः । तस्य तस्य निरोधाय स स योज्यो मनीषिभिः ॥ ३ ॥ क्षमया मृदुभावेन, ऋजुत्वेनाप्यनीया | क्रोधं मानं तथां मायां, लोभं संध्याद्यथाक्रमम् ॥४॥ असंयमकृतोत्सेकान्, विषयान् विषसंनिभान् । निराकुर्यादखंडेन संयमेन महामतिः ॥ ५ ॥ त्रिसृभिर्गुप्तिभिर्योगान् प्रमादं चाप्रमादतः । सावद्ययोगहानेनाविति चापि साधयेत्ः ॥ ६ ॥ सदर्शनेन मिथ्यात्वं शुभस्थैर्येण चेतसः । विजयेत्तातरौद्रे च संवरार्थं कृतोद्यमः ॥ ७ ॥
इन सात श्लोकों में इस देशना का सार आ गया है। संवर के द्वारा सभी प्रकार के अशुभ कर्मों के, आत्मा में प्रवेश करने के द्वार बन्द किये जाते हैं । संवर उस फौलादी कवच का नाम है, जिसके द्वारा आत्मा - सम्राट की पूर्ण रूप से रक्षा होती है । संवर रूपी रक्षक के सद्भाव में विषय कषायादि चोर, आत्मा के ज्ञानादि गुणों और सुख-शान्ति को नहीं चुरा सकते ।
संवर के व्यवहार दृष्टि से २० भेद इस प्रकार हैं
१ मिथ्यात्व आस्रव को रोक कर 'सम्यक्त्व' गुण की रक्षा करना, इसी प्रकार २ विरति ३ अप्रमत्तता ४ कषाय त्याग ५ अशुभ योगों का त्याग ६ प्राणातिपात विरमण ७ मृषावाद विरमण ८ अदत्तादान विरमण ९ मैथुन त्याग १० परिग्रह त्याग ११ श्रोतेन्द्रिय संवर १२ चक्षुइन्द्रिय संवर १३ घ्राणेन्द्रिय संवर १४ रसनेन्द्रिय निरोध १५ स्पर्शनेन्द्रिय संवर १६ मन संवर १७ वचन संवर १५ काय संवर १९ भण्डोपकरण उठाते-रखते अयतना से होने वाले आस्रव का निरोध और २० सूचि कुशाग्र मात्र लेने रखने में सावधानी रखना |
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दूसरी अपेक्षा से संबर के ५७ भेद इस प्रकार हैं-
५ पाँच समिति ६-८ तीन गुप्ति ९-३० बाईस परीषह सहन करना ३१-४० क्षमादि दस प्रकार का यतिधर्म ४१-५२ अनित्यादि बारह भावना और ५३-५७ सामा
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