Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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भ० श्रेयांसनाथजी--अश्वग्रीव का होने वाला शत्रु
२१३
बड़े-बड़े राजा, अश्वग्रीव महाराज की आज्ञा में रहने लगे। वह वासुदेव के समान (प्रतिवासुदेव) था । वह एक छत्र साम्राज्य का अधिपति हो गया था ।
अश्वग्रीव का होने वाला शत्र
एक बार अश्वग्रोव के मन में विकल्प उत्पन्न हुआ कि '' में दक्षिण भरत-क्षेत्र का स्वामी हूँ। अब तक मेरी सत्ता को चुनौती देने वाला कोई दिखाई नहीं दिया, किंतु भविष्य में मेरे साम्राज्य के लिए भय उत्पन्न करने वाला भी कोई वीर उत्पन्न हो सकता है क्या?'' इस विचार के उत्पन्न होते ही उसने अश्वबिन्दु नाम के निष्णात भविष्यवेत्ता को बुलाया और अपना भविष्य बताने के लिए कहा। भविष्यवेत्ता ने विचार कर के कहा--" राजन्द्र ! जो व्यक्ति आपके चण्डवेग नाम के दूत का पराभव करेगा और पश्चिमी सीमान्त के वन में रहने वाले सिंह को मार डालेगा, वही आपके लिए घातक बनेगा।" भविष्यवेत्ता का कथन सुन कर राजा के मन को आघात लगा। किन्तु अपना क्षोभ दबाते हुए पंडित को पुरस्कार दे कर विदा किया। उसी समय वनपालक की ओर से एक दूत आया और निवेदन करने लगा;--
"महाराजाधिराज की जय हो। मैं पश्चिम के सीमान्त से आया हूँ। यों तो आपके प्रताप से वहाँ सुख-शांति व्याप रही है, किन्तु वन में एक प्रचण्ड केसरीसिंह ने उत्पात मचा रखा है । उस ओर के दूर-दूर तक के क्षेत्र में उनका आतंक छाया हुआ है । पशुओं को ही नहीं, वह तो मनुष्यों को भी अपने जबड़े में दबा कर ले जाता है। अब तक उसने कई मनुष्यों को मार डाला। लोग भयभीत हैं । बड़े-बड़े साहसी शिकारी भी उससे डरते हैं । उसकी गर्जना से स्त्रियों के ही नहीं, पशुओं के भी गर्भ गिर जाते हैं । लोग घर-बार छोड़ कर नगर की ओर भाग रहे हैं। इस दुर्दान्त वनराज का अन्त करने के लिए शीघ्र ही कुछ व्यवस्था होनी चाहिए । में यही प्रार्थना करने के लिए सेवा में उपस्थित हुआ हूँ।"
राजा ने दूत को आश्वासन दे कर बिदा किया और स्वयं उपाय सोचने लगा। उसने विचार किया कि भविष्यवेत्ता के अनुसार, शत्रु को पहिचानने का यह प्रथम निमित्त उपस्थित हुआ है। उसने उस प्रदेश की सिंह से रक्षा करने के लिए अपने सामन्त राजाओं को आज्ञा दी। वे क्रमानुसार आज्ञा का पालन करने के लिए जाने लगे।
राजा के मन में खटका तो था ही । उसने एक दिन अपनी सभा से यह प्रश्न किया;--
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