Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
२४०
तीर्थकर चरित्र
इस पर योग्य विचार करना चाहिए।"
तारक को गुप्तचरों की बात लग गई । वह उत्तेजित हो गया। उसने अपने सेनापति को बला कर आज्ञा दी;--
" सेनापति ! तुम अपने सामंत राजाओं के साथ, सेना ले कर द्वारिका जाओ और ब्रह्म राजा को उसके पुत्रों सहित मार डालो । उनको उठते ही कुचल देना ठीक होगा। उपेक्षा करने से व्याधि के समान शत्रु भी असाध्य हो जाता है।
राजा की आज्ञा सुन कर वृद्ध मन्त्री ने निवेदन किया
" महाराज ! जरा शांति से विचार करो। ब्रह्म राजा के विषय में यह पहली ही शिकायत है । वह आज तक आपका आज्ञाकारी सामन्त रहा है। किसी खास कारण के बिना चढ़ाई कर देना अन्याय होगा। इससे दूसरे सामन्तों के मन में सन्देह उत्पन्न होगा और सन्देह होने पर वे भी विश्वास के योग्य नहीं रह सकेंगे । जिनमें विश्वास नहीं होगा, वे आज्ञा का पालन कैसे कर सकेंगे और आज्ञा का पालन नहीं हुआ, तो स्वामित्व कैसे रहेगा? इसलिए पहले उस पर किसी अपराध का आरोप लगा कर, उसके पास अपना दूत भेजना चाहिए और दण्ड स्वरूप श्रेष्ठ हाथी, घोडे और रत्नों की मांग करनी चाहिए। यदि वह मांग अस्वीकार कर दे, तो फिर उसी अपराध में उन्हें मार देना ठीक होगा। नियमपूर्वक काम करने में अनीति का आरोप नहीं लगता और दूसरों के मन में सन्देह उत्पन्न नहीं होता।"
तारक नरेश ने मन्त्री की सलाह मानी और अपना विश्वस्त दूत द्वारिका, ब्रह्म राजा के पास भेजा। राजा ने दूत को संमानपूर्वक अपने पास बिठाया और प्रेमालाप करने के बाद आने का कारण पूछा । दूत ने कहा
__ "हे द्वारकेश ! स्वामी की आज्ञा है कि आपके पास जो भी सर्वश्रेष्ठ हाथी, घोड़ा और रत्नादि उतम सामग्री हो, वह हमारी सेवा में प्रस्तुत करो। इस अर्ध भरत-क्षेत्र में जो भी सर्वश्रेष्ठ वस्तु हो, उसका भोग भरताधिपति ही कर सकते हैं। मैं यही सन्देश ले कर आया हूँ।"
राजकुमार भी यह बात सुन रहे थे। राजा के बोलने के पूर्व ही द्विपृष्ट कुमार क्रुद्ध हो कर गर्जना करते हुए बोले;
"तुम्हारा स्वामी तारक राजा, न तो हमारे वंश का ज्येष्ठ पुरुष है और न हमारा स्वामी ही है । यह राज, तारक ने हमें या हमारे वंश को दान में नहीं दिया और न वह
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org