Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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भ० श्रेयांसनाथजी-त्रिपृष्ठकुमार के लग्न
२२१
रंग गई । एक बार वह राजा को प्रणाम करने गई । पुत्री के विकसित अंगों को देख कर राजा को चिंता हुई। उसने अपने मन्त्रियों को पुत्री के योग्य वर के विषय में पूछा।
सुश्रुत नामक मन्त्री ने कहा-" महाराज ! इस समय तो महाराजाधिराज अश्वग्रीव ही सर्वोपरि हैं। वे अनुपम सुन्दर, अनुपम वीर और विद्याधरों के इन्द्र समान हैं । उनसे बढ़ कर कोई योग्य वर नहीं हो सकता।''
___ " नहीं महाराज ! अश्वग्रीव तो अब गत-यौवन हो गया है। ऐसा प्रौढ़ व्यक्ति राजकुमारी के योग्य नहीं हो सकता । उत्तर श्रेणि के विद्याधरों में ऐसे अनेक युवक नरेश या राजकुमार मिल सकते हैं, जो भुजबल, पराक्रम एवं सभी प्रकार की योग्यता से परिपूर्ण हैं । उन्हीं में से किसी को चुनना ठीक होगा"--बहुश्रुत मन्त्री ने कहा।
__ " महाराज ! इन महानुभावों का कहना भी ठीक है, किन्तु मेरा तो निवेदन है कि उत्तर श्रेणि की प्रभंकरा नगरी के पराक्रमी महाराजा मेघवाहन के सुपुत्र विद्युत्प्रभ' सभी दृष्टियों से योग्य एवं समर्थ है। उसकी बहिन ज्योतिर्माला' भी देवकन्या के समान सुन्दर है। मेरी दृष्टि में विद्युत्प्रभ और राजकुमारी स्वयंप्रभा, तथा युवराज अर्ककीति और ज्योतिर्माला की जोड़ी अच्छी रहेगी। आप इस पर विचार करें''--सुमति नामक मन्त्री ने कहा।
"स्वामिन् ! बहुत सोच समझ कर काम करना है"--मन्त्री श्रुतसागर कहने लगा- " लक्ष्मी के समान परमोत्तम स्त्री-रत्न की इच्छा कौन नहीं करता ? यदि राजकुमारी किसी एक को दी गई, तो दूसरे क्रुद्ध हो कर कहीं उपद्रव खड़ा नहीं कर दें। इसलिए स्वयंवर करना सब से ठीक होगा। इसमें राजकुमारी की इच्छा पर ही वर चुनने की बात रहेगी और आप पर कोई क्रुद्ध नही हो सकेगा।"
__इस प्रकार राजा ने मन्त्रियों का मत जान कर सभा विजित की और संभिन्नश्रोत नाम के भविष्यवेत्ता को बुला कर पूछा । भविष्यवेत्ता ने सोच-विचार कर कहा;--
"महाराज ! तीर्थकर भगवंतों के वचनानुसार यह समय प्रथम बासुदेव के अस्तित्व को बता रहा है । मेरे विचार से अश्वग्रीव की चढ़ती के दिन बीत चुके हैं । उसके जीवन को समाप्त कर, वासुदेव पद पाने वाले परम वीर पुरुष उत्पन्न हो चुके हैं । मैं समझता हूँ कि प्रजापति के कनिष्ठपुत्र त्रिपृष्ठ कुमार जिन्होंने महान् क्रुद्ध एवं बलिष्ठ केसरीसिंह को कपड़े के समान चीर कर फाड़ दिया, वही राजकुमारी के लिए सर्वथा योग्य हैं। उनके समान और कोई नहीं है।"
राजा ने भविष्यवेत्ता का कथन सहर्ष स्वीकार किया और एक विश्वस्त दूत को
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