Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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भ. श्रेयांसनाथजी--अश्वग्रीव का भयंकर युद्ध और मृत्यु
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कहा---' यह सब विद्याधरों का माया-जाल है। इसमें वास्तविकता कुछ भी नहीं है । जब इनकी सेना हारने लगी, और हमारी सेना पर इनका जोर नहीं चला, तो ये विद्या के बल से भयभीत करने को तत्पर हुए हैं। यह इनकी कमजोरी है ये बच्चों को डराने जैसी कायरता पूर्ण चाल चल रहे हैं। इससे भयभीत होने की जरूरत नहीं है। अतएव हे महावीर ! उठो और रथारूढ़ हो कर आगे आओ, तथा अपने शत्रुओं को मानरूपी हाथी पर से उतार कर नीचे पटको।'
ज्वलन जटी के वचन सुन कर त्रिपृष्ठकुमार उठे और अपने रथ पर आरूढ़ हुए। उन्हें सन्नद्ध देख कर सेना भी उत्साहित हुई । सेना में उत्साह भरते हुए वे आगे आये। अचल बलदेव भी शस्त्रसज्ज रथारूढ़ हो कर युद्ध-क्षेत्र में आ गये । इधर ज्वलन जटी आदि विद्याधर भी अपने-अपने वाहन पर चढ़ कर मैदान में आ गए । उस समय वासुदेव के पुण्य से आकर्षित हो कर देवगण वहाँ आए और त्रिपृष्ठकुमार को वासुदेव के योग्य 'शांर्ग' नामक दिव्य धनुष, 'कौमुदी' नाम की गदा, पांचजन्य' नामक शंख, 'कौस्तुभ' नामक मणि, 'नन्द' नामक खड्ग और वनमाला' नाम की एक जयमाला अर्पण की। इसी प्रकार अचलकुमार को बलदेव के योग्य--'संवर्तक' नामक हल, ‘सौनन्द' नामक मुसल और 'चन्द्रिका' नाम की गदा भट की । वासुदेव और बलदेव को दिव्य अस्त्र प्राप्त होते देख कर सैनिकों के उत्साह में भरपूर वृद्धि हुई । वे बढ़-चढ़ कर युद्ध करने लगे। उस समय त्रिपृष्ठ वासुदेव ने पांचजन्य शंख का नाद कर के दिशाओं को गुंजायमान कर दिया। प्रलयंकारी मेघ-गर्जना के समान शंखनाद सुन कर अश्वग्रीव की सेना क्षुब्ध हो गई। कितने ही सुभटों के हाथों में से शस्त्र छूट कर गिर गए। कितने ही स्वयं पृथ्वी पर गिर गए। कई भाग गए। कई आँखें बन्द किए संकुचित हो कर बैठ गए, कई गुफाओं और कई थरथर धूजने लगे।
अश्वग्रीव का भयंकर युद्ध और मृत्यु
अपनी सेना को हताश एवं छिन्न-भिन्न हुई देख कर अश्वग्रीव ने सैनिकों से कहा--
"ओ, विद्याधरो ! वीर सैनिको ! एक शंख-ध्वनि सुन कर ही तुम इतने भयभीत हो गए ? कहाँ गई तुम्हारी वह अजेयता ? कहाँ गई प्रतिष्ठा ? तुम अपनी आज तक प्राप्त की हुई प्रतिष्ठा का विचार कर के, शीघ्र ही निर्भय बन कर मैदान में आओ । आकाशचारी
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