Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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भ० धेयांसनाथजी-अश्वग्रीव का होने वाला शत्रु
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सामने कह कर उन्हें भड़काया तो जा सकता है, किन्तु फिर पुनः प्रसन्न कर पाना असंभव होता है । मैं इस स्थिति को जानता हूँ मैं तो आपका मित्र हूँ, इसलिए मेरी ओर से आप ऐसी शंका नहीं लावें ।'
इस प्रकार आश्वासन दे कर चण्डवेग चला गया। वह कई दिनों के बाद राजधानी में पहुँचा । उसके पहुँचने के पूर्व ही उसके पराभव की कहानी महाराजा अश्वग्रीव तक पहुँच चुकी थी । त्रिपृष्ठ कुमार के प्रताप से भयभीत हो कर भागे हुए चण्डवेग के कुछ सेवकों ने इस घटना का विवरण सुना दिया था। चण्डवेग ने आ कर राजा को प्रणाम कर के प्रजापति से प्राप्त भेंट उपस्थित की। राजा के चेहरे का भाव देख कर वह समझ गया कि राजा को सब कुछ मालूम हो गया है । उसने निवेदन किया ;
महाराजाधिराज की जय हो। प्रजापति ने भेंट समर्पित की है। वह पूर्णरूपेण आज्ञाकारी है । श्रीमंत के प्रति उसके मन में पूर्ण भक्ति है । उसके पुत्र कुछ उद्दण्ड और उच्छृखल हैं, किन्तु वह तो शासन के प्रति भक्ति रखता है । अपने पुत्र की अभद्रता से उसको बड़ा खेद हुआ। वह दुःखपूर्वक क्षमा याचना करता है।"
अश्वग्रीव दूसरे ही विचारों में लीन था । वह सोच रहा था-'भविष्यवेत्ता की एक बात तो सत्य निकली । यदि सिंह-वध की बात भी सत्य सिद्ध हो जाय, तो अवश्य ही वह भय का स्थान है—यह मानना ही होगा। उसने एक दूसरा दूत प्रजापति के पास भेज कर कहलाया कि--" तुम सिंह के उपद्रव से उस प्रदेश को निर्भय करों।" दूत के आते ही प्रजापति ने कुमारों को बुला कर कहा; --
“ यह तुम्हारी उदंडता का फल है। यदि इस आज्ञा का पालन नहीं हुआ, तो अश्वग्रीव, यमराज बन कर नष्ट कर देगा, और आज्ञा का पालन करने गये, तो वह सिंह स्वयं यमराज बन सकता है। इस प्रकार दोनों प्रकार से हम संकट ग्रस्त हो गए हैं। अभी तो मैं सिंह के सम्मुख जाता हूँ। आगे जैसा होना होगा, वैसा होगा।"
__ कुमारों ने कहा; --"पिताश्री आप निश्चित रहें। अश्वग्रीव का बल भी हमारे ध्यान में है और सिंह तो बिचारा पशु है। उसका तो भय ही क्या है ? अतएव आप किसी प्रकार की चिंता नहीं करें और हमें आज्ञा दें, तो हम उस सिंह के उपद्रव को शांत कर के शीघ्र लौट आवें ।"
-"पुत्रों ! तुम अभी बच्चे हो। तुम्हें कार्याकार्य और फलाफल का ज्ञान नहीं है । तुमने बिना विचारे जो अकार्य कर डाला, उसी से यह विपत्ति आई । अब आगे तुम
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