Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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भ० श्रेयांसनाथजी -- त्रिपृष्ठ वासुदेव चरित्र
था । राजकुमार विश्वमूर्ति अपनी स्त्रियों के साथ उसी उद्यान में रह कर विषय-सुख में लीन रहने लगा ।
एक बार महाराज विश्वनन्दी के पुत्र राजकुमार विशाखनन्दी के मन में, इस पुष्पकरंडक उद्यान में अपनी रानियों के साथ रह कर क्रीड़ा करने की इच्छा हुई । किंतु उस उद्यान में तो पहले से ही विवभूति जमा हुआ था । इसलिए विशाखनन्दी वहाँ जा ही नहीं सकता था । वह मन मार कर रह गया। एक बार महारानी की दासियाँ उस उद्यान फूल लेने गई । उन्होंने विश्वभूति और उसकी रानियों को उन्मुक्त क्रीड़ा करते देखा । उनके मन में डाह उत्न्न हुई। उन्होने महारानी से कहा-
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'महारानीजी ! इस समय वास्तविक राजकुमार तो मात्र विश्वभूति ही है। वही सर्वोत्तम ऐसे पुष्पकरण्डक उद्यान का उपभोग कर रहा है और अपने राजकुमार तो उससे वंचित रह कर मामूली जगह रहते हैं । यह हमें तो बहुत बुरा लगता है । महाराजाधिराज एवं राजमहिषी का पाटवी कुमार, साधारण ढंग से रहे और छोटा भाई का लड़का राजाधिराज के समान सुख भोग करे, यह कितनी बुरी बात है ? "
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महारानी को बात लग गई। उनके मन में भी द्वेष की चिनगारी पैठ गई और सुलगने लगी । महाराज अन्तःपुर में आये । रानी को उदास देख कर पूछा। राजा ने रानी को समझाया - "प्रिये ! यह ऐसी बात नहीं है जिससे मन मैला किया जाय । कुछ दिन विश्वभूति रह ले, फिर वह अपने आप वहां से हट कर भवन में आ जायगा और विशाखनन्दी वहाँ चला जायगा । छोटी-सी बात में कलह उत्पन्न करना उचित नहीं है ।" किन्तु रानी की संतोष नहीं हुआ । अन्त में महाराजा ने रानी की मनोकामना पूर्ण करने का आश्वासन दिया, तब संतोष हुआ ।
राजा ने एक चाल चली । उसने युद्ध की तय्यारियाँ प्रारम्भ की। सर्वत्र हलचल मच गई । यह समाचार विश्वभूति तक पहुँचा, तो वह तुरन्त महाराज के पास आया और महाराज से युद्ध की तय्यारियों का कारण पूछा। महाराजा ने कहा, --
" वत्स ! अपना सामन्त पुरुषसिंह विद्रोही बन गया है । वह उपद्रव मचा कर राज्य को छिन्न-भिन्न करना चाहता है । उसे अनुशासन में रखने के लिए युद्ध आवश्यक हो गया है ।"
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'पूज्यवर ! इसके लिये स्वयं आपका पधारना आवश्यक नहीं है । में स्वयं जा कर उसके विद्रोह को दबा दूंगा और उसकी उद्दंडता का दण्ड दे कर सीधा कर दूंगा । आप
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