Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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भ० सुमतिनाथजी
जम्बूद्वीप के पुष्कलावती विजय में शंखपुर नाम का नगर था । विजयसेन राजा और सुदर्शना रानी थी। एक बार किसी उत्सव के प्रसंग पर सभी नगरजन उद्यान में क्रीड़ा करने गये । रानी भी अपनी ऋद्धि सहित हथिनी पर सवार हो कर और छत्र-चँवरयुक्त उद्यान में पहुँची । वहाँ उसने सुन्दर और अलंकृत आठ स्त्रियों के साथ आई हुई एक ऐसी स्त्री देखी, जो अप्सराओं के बीच इन्द्रानी जैसी सुशोभित हो रही थी । रानी उसे देख कर विस्मित हुई । उसे विचार हुआ-" यह स्त्री कौन है ? इसके साथ ये आठ सुन्दरियां कौन है ?'' यह जानने के लिए उसने अपने नाजर को पता लगाने की आज्ञा दी। उसने लौट कर कहा-वह भद्र महिला यहाँ के प्रतिष्ठित सेठ नन्दीषण की सुलक्षणा नाम की पत्नी है और आठ स्त्रियाँ उसके दो पुत्रों की (प्रत्येक की चार-चार) पत्नियाँ है। ये अपनी सास की सेवा दासी के समान करती है ।" यह सुन कर रानी को विचार हआ-- " यह स्त्री धन्य है, सौभाग्यवती है कि जिसे पुत्र और उसकी देवांगना जैसी बहुएँ प्राप्त हुई है और वे इसकी सेवा में रत हैं। मैं कितनी हतभागिनी हूँ कि मुझे न तो पुत्र है, न बहू । यद्यपि मैं अपने पति के हृदय के समान हूँ, फिर भी मैं पुत्र और पुत्रवधू के सुख से वंचित हूँ"--इस प्रकार चिन्तामग्न रानी भवन में लौट आई। उसकी चिन्ता का कारण जान कर राजा ने उसे सान्त्वना दी और कुलदेवी की आराधना की । कुलदेवी ने प्रकट हो कर कहा--" एक महान् ऋद्धिशाली देव, रानी की कुक्षी में पुत्रपने आने वाला है।" राजा-रानी प्रसन्न हुए। रानी सिंह स्वप्न के साथ गर्भवती हुई । उसे सभी प्राणियों को अभयदान देने का दोहद हुआ। दोहद पूर्ण हुआ और यथावसर एक सुन्दर पुत्र का जन्म
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