Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थंकर चरित्र
ग्रस्त रहा करते हैं। वे मन में पश्चात्ताप करते रहते हैं कि मैने पूर्व-जन्म में कुछ भी सुकृत्य नहीं किया, जिससे यहाँ देव भव पा कर भी सेवक-दास के रूप में उत्पन्न हुआ ? इस प्रकार चिन्ता करते और अपने से अधिक सम्पत्तिशाली देवों के वैभव को देख कर खेद करते रहते हैं । वे अन्य देवों के विमान, देवांगनाएँ एवं उपवन सम्बन्धी सम्पत्ति देख देख कर जीवनपर्यंत ईर्षा रूपी अग्नि में जलते रहते हैं। कई बलिष्ट देव, अल्प सत्व वाले देव की ऋद्धि, देवांगना आदि छीन लेते हैं। इससे निराश्रित बने हुए देव, निरन्तर शोक करते रहते हैं। पुण्य-कर्म से देव-गति प्राप्त करने पर भी वे काम, क्रोध और भय से आतुर रहते हैं । वे कभी भी स्वस्थता एवं शांति का अनुभव नहीं करते ।
जब देव का आयुष्य पूर्ण होने वाला होता है, तब छह महीने पूर्व से ही मृत्यु के चिन्ह देख कर भयभीत हो जाते हैं और मृत्यु से बचने के लिए, छुपने का प्रयत्न करते हैं ।
__ कल्पवृक्षों के पुष्पों की बनी हुई माला कभी मुरझाती नहीं है। वह सदैव विकसित ही रहती है, किन्तु जब देव के च्यवन (मृत्यु) का समय निकट आता है, तब उस देव का मख-कमल भी म्लान हो जाता है और वह पुष्पमाला भी मुरझा जाती है। वहां के कल्पवृक्ष इतने दृढ़ होते हैं कि बड़े बलवान् मनुष्यों के हिलाने पर भी नहीं हिलते हैं, किंतु देवता का च्यवन समय निकट आने पर वे कल्पवृक्ष भी शिथिल हो जाते हैं। उत्पत्ति के साथ ही प्राप्त हुई और अत्यन्त प्रिय लगने वाली ऐसी लक्ष्मी और लज्जा भी उनसे रूठ जाती हैं। निरन्तर निर्मल एवं सुशोभित करने वाले उनके वस्त्र भी मलिन एवं अशोभनीय हो जाते हैं। जब चींटियों की मृत्यु का समय निकट आता है, तब उनके पंख निकल आते हैं, उसी प्रकार च्यवन समय निकट आने पर देवों में, अदीन होते हुए भी दीनता और निद्रा रहित होते हुए भी निद्रा आती है । जिस प्रकार असह्य दुःख से घबरा कर मृत्यु को चाहने वाला मनुष्य, विष-पान करता है, उसी प्रकार अज्ञानी देव, च्यवन समय आने पर न्याय एवं धर्म को छोड़ कर विषयों के प्रति विशेष रागी बन जाता है । यद्यपि देवों को किसी प्रकार का रोग नहीं होता, किन्तु मृत्यु समय निकट आने पर वेदना से उनके अंगोपांग और शरीर के जोड़ शिथिल हो कर दर्द करने लगते हैं और उन्हें आलस्य घेर लेता है । उनकी दृष्टि भी मंद हो जाती है। 'भविष्य में उन्हें गर्भवास में रहना पड़ेगा'--इस विचार व उस घृणित एवं दुःखमय स्थिति का अनुभव कर के उनका शरीर ऐसा धूजने लगता और विकृत हो जाता है कि जिसे देखने वाला भी डर जाता है । इस प्रकार च्यवन के चिन्हों को देख कर और अपना मरणकाल निकट जान कर उन्हें वैसी बेचैनी होती है
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