Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थंकर चरित्र
कर उत्पन्न की हुई असह्य वेदना सहन करते हैं ।
खेचर ( उड़ने वाले) प्राणियों में तीतर, पोपट, कपोत और चिड़िया आदि पक्षियों का मांस लोलुप श्येन बाज और गिद्ध आदि पक्षी भक्षण करते हैं । मांस भक्षी मनुष्य भी अनेक प्रकार के जाल फैला कर या शस्त्रादि से मार कर विनाश करते हैं । तिर्यंच पक्षियों को वर्षा से दुःखी हो कर मरने, अग्नि ( दावानल आदि) में जल कर भस्म होने और शस्त्र के आघात आदि सभी प्रकार का भय बना रहता है । तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों के विविध प्रकार के दुःखों का वर्णन कितना किया जाय ! उनके दुःख भी वर्णनातीत है ।
मनुष्य गति के दुःख
मनुष्यत्व प्राप्त कर के यदि अनार्य देश में उत्पन्न हुआ, तो वहाँ इतना पाप करता है कि जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता । आर्य-देश में भी चांडाल आदि जाति में अनार्य के समान पाप की प्रचुरता होती है और महान् दुःख का अनुभव करते हैं । आर्यदेश वासी कई मनुष्य, अनार्य कृत्य करने वाले होते हैं । परिणाम स्वरूप दारिद्र एवं दुर्भाग्य से दग्ध हो कर निरन्तर दुःख भोगते हैं । कई मनुष्य दूसरों को सम्पत्तिशाली तथा अपने को दरिद्र देख कर, दुःख एवं संतापपूर्वक जीवन व्यतीत करते हैं । कई मनुष्य रोग, जरा और मरणाभिमुख हो कर और असातावेदनीय के उग्र उदय से दुःखी हो कर ऐसी विडम्बना में पड़े हैं कि जिन्हें देख कर दया आती है ।
समान है । गर्भवास ऐसे
मृत्यु के भी नहीं है ।
मनुष्य के गर्भवास के दुःख भी नरक के घोर दुःख के दुःख का कारण है कि जैसे दुःख, रोग, वृद्धावस्था, दासत्व एवं आग में तपा कर गर्म की हुई सूइयों को मनुष्य के प्रत्येक रोम में एक साथ भोंकी जाने पर जितना दुःख होता है, उससे आठ गुना अधिक दुःख जीव को गर्भवास में होता है और जन्म के समय जीव को जो दुःख होता है, वह गर्भवास के दुःख से भी अनन्त गुण है । जन्म के बाद बाल अवस्था में मूत्र एवं विष्टा से, यौवनवय में रति-विलास से और वृद्धावस्था में श्वास, खांसी आदि रोग से पीड़ित होता है, फिर भी वह लज्जारहित रहता है। मनुष्य बालवय में विष्टा का इच्छुक -- भंडसूर, युवावस्था में कामदेव का गधा और वृद्धावस्था में बूढ़ा बैल बन जाता है । किन्तु वह पुरुष होते हुए भी पुरुष नहीं बनता ( पशु जैसा रहता है) शिशु वय में मातृमुखी ( माता के मुख को ताकने वाला) यौवन में खुमी स्त्री (स्त्री की गरज करनेवाला) और बुढ़ापे में पुत्र - मुखी (पुत्र के आश्रय में जन्म
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