Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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भ० सुविधिनाथजी
पुष्करवर दीपार्द्ध के पूर्व-विदेह में पुष्कलावती विजय है । उस विजय में 'पुंडरिकिनी' नाम की नगरी थी । ‘महापद्म' वहाँ का शासक था । वह बड़ा ही धर्मात्मा एवं हलुकर्मी था। उसने संसार का त्याग कर के जगन्नन्द मुनिराज के पास सर्वविरति स्वीकार कर ली। साधना में उन्नत होते हुए उन्होंने जिन नामकर्म का बन्ध कर लिया और आयुष्य पूर्ण कर के वैजयंत नाम के अनुत्तर विमान में देव रूप में उत्पन्न हुए।
इस जम्बूद्वीप के दक्षिण भरत में ' काकंदी' नाम की नगरी थी। उस भव्य नगरी का शासन महाराजा ‘सुग्रीव' करते थे। महारानी 'रामा' उनकी प्रिय पत्नी थी।वैजयंत विमान में ३३ सागरोपम का आयु पूर्ण कर के महापद्म देव, फाल्गुन-कृष्णा नौमी को मूलनक्षत्र में रामादेवी की कुक्षि में उत्पन्न हुआ। चौदह महास्वप्न देखे । मार्गशीर्ष-कृष्णापंचमी को मूल नक्षत्र में पुत्र का जन्म हुआ। देव-देवियों और इन्द्रों ने जन्मोत्सव किया । गर्भावस्था में, गर्भ के प्रभाव से रामादेवी सभी प्रकार के कार्यों को सम्पन्न करने की विधि में कुशल हुई । इसलिए पुत्र का नाम 'सुविधि' रखा और पुष्प के दोहद से पुत्र के दाँत आये, इसलिए दूसरा नाम ‘पुष्पदंत' हुआ। यौवन वय में राजकुमारियों के साथ लग्न किया । पचास हजार पूर्व तक कुमार अवस्था में रहे। फिर पिता ने आपको राज्याधिकार प्रदान किया। पवास हजार पूर्व और अट्ठाईस पूर्वांग तक राज्य का शासन किया। उसके बाद मार्गशीर्षषष्ठी के दिन मूल-नक्षत्र में बेले के तप सहित सर्वत्यागी बन गए । आपके साथ एक हजार राजाओं ने भी प्रवज्या स्वीकार की। चार मास तक प्रभु छद्मस्थ रहे और कार्तिक-शुक्ला
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