Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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भ० संभवनाथजी--भयंकर दुष्काल में संघ-सेवा
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में दुष्काल पड़ गया। वर्षा के अभाव में वर्षाकाल भी दूसरा ग्रीष्मकाल बन गया था। नैऋत्यकोण के भयंकर वायु से रहेसहे पानी का शोषण और वृक्षों का उच्छेद होने लगा। सूर्य काँसे की थाली जैसा लगता था और लोग धान्य के अभाव में तापसों की तरह वृक्ष की छाल, कन्द, मूल और फल खा कर जीवन बिताने लगे। उस समय लोगों की भूख भी भस्मक व्याधि के समान जोरदार हो गई थी। उनको पर्याप्त खुराक मिलने पर भी तृप्ति नहीं होती थी। जो लोग भीख माँगना लज्जाजनक मानते थे, वे भी दंभपूर्वक साधु का वेश बना कर भिक्षा के लिए भ्रमण करने लगे। माता-पिता भूख के मारे अपने बच्चों को भी छोड़ कर इधर-उधर भटकने लगे । यदि कभी अन्न मिल जाता, तो अपना ही पेट भरने की रुचि रखते । माताएँ थोड़े से--आधसेर धान के लिए अपने पुत्र-पुत्री बेचने लगी। धनवानों के द्वार पर बिखरे हुए धान्य के दानों को गरीब मनुष्य पक्षी की तरह एक-एक दाना बिन कर खाने लगे । यदि दिनभर में उन्हें आधी रोटी जितना भी मिल जाता, तो वह दिन अच्छा माना जाता । मनुष्यों के भटकते हुए दुर्बल कंकालों से नगर के प्रमुख बाजार और मार्ग भी श्मशान जैसे लग रहे थे । उनका कोलाहल कर्णशूल जैसा लग रहा था।
ऐसे भयंकर दुष्काल को देख कर राजा बहुत चिंतित हुआ। उसे प्रजा को दुष्काल की भयंकर ज्वाला से बचाने का कोई साधन दिखाई नहीं दिया। उसने सोचा-'यदि मेरे पास जितना धान्य है, वह सभी बाँट दूं, तो भी प्रजा की एक समय की भूख भी नहीं मिटा सकता । इसलिए इस सामग्री का सदुपयोग कैसे हो ? उसने विचार कर के निश्चय किया कि प्रजा में भी साधर्मी, अधिक गुणवान् एवं प्रशस्त होते हैं और साधर्मी से साधु विशेष रक्षणीय होते हैं । मेरी सामग्री से संघ रक्षा हो सकती है।' उसने अपने रसोइये को बुला कर कहा--
"तुम मेरे लिए जो भोजन बनाते हो, वह साधु-साध्वियों को बहराया जावे और अन्य आहार, संघ के सदस्यों को दिया जावे । इसमें से बचा हुआ आहार में काम में लूंगा"
राजा इस प्रकार चतुर्विध संघ की वैयावृत्य करने लगा । वह स्वयं उल्लासपूर्वक सेवा करने लगा। जब तक दुष्काल रहा, तब तक इसी प्रकार सेवा करता रहा । संघ की वैयावृत्य करते हुए भावों के उल्लास में राजा ने तीर्थंकर नामकर्म का उपार्जन किया।
एक दिन राजा आकाश में छाई हुई काली घटा देख रहा था। बिजलियाँ चमक रही थी। लग रहा था कि घनघोर वर्षा होने ही वाली है, किन्तु अकस्मात् प्रचण्ड वायु चला और नभ-मण्डल में छाये हुए बादल, टुकड़े-टुकड़े हो कर बिखर गए । क्षणभर में
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