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भ० ऋषभदेवजी--भरत-बाहुबली का द्वंद्व-युद्ध
मेरे बल को, धिक्कार है मेरे दुःसाहम को, विक्कार है मेरी भुजा को और मेरे ऐसे दुष्कृत्य की उपेक्षा करने वाले राज्य-मन्त्रियों को भी धिक्कार है।" इस प्रकार विचार आते ही उन्होंने आकाश की ओर देख कर पृथ्वी पर गिरने के पूर्व ही भरतेश्वर को अपने हाथों में झेल लिये। चारों ओर हर्ष की लहर दौड़ गई। किन्तु भरतेश्वर के हृदय में कोप की ज्वाला भड़क उठी। उस समय बाहुबलीजी विनम्र हो कर कहने लगे;
“हे भरताविपति ! हे महावीर्य ! हे महाबाहु ! आपको खेद नहीं करना चाहिए। देव-योग से में इस बार जीत गया, तो भी मैं विजयी नहीं हुआ। अब तक आप अजातशत्रु ही हैं । आप आगे के युद्ध के लिए तय्यार हो जाइए।
भरनेश्वर ने कहा; -- "मेरी भुजा, मुष्टि प्रहार कर के पिछले दोष का परिमार्जन करेगी।"
इतना कह कर उन्होंने मूठ उठाई। वे बाहुबलीजी की ओर दौड़े और बाहुबलीजी की छाती पर जोरदार प्रहार किया । किन्तु उसका बाहुबलीजी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा और वे अडिग रहे । इसके बाद बाहुबलीजी मूठ तान कर भरतेश्वर पर झपटे और उनकी छाती पर मुक्का मारा। इस आघात को सहन नहीं कर सकने के कारण भरतेश्वर मच्छित हो कर धराशायी हो गए। उनके गिरने और मूच्छित होने पर बाहुबली को विचार हुआ कि
"क्षत्रियों के मन में यह वीरत्व का दुराग्रह क्यों उत्पन्न होता है कि जो अपने भाई तक के प्राणों को नष्ट करने वाला बन जाता है । यदि मेरे भाई जीवित नहीं रहे, तो मुझे जीवित रह कर क्या करना है ?''
इस प्रकार चिन्ता करते हुए और आँखों से आंसू बहाते हुए बाहुबली अपने उत्तरीय वस्त्र से भरतेश्वर पर वायु संचार करने लगे। थोड़ी देर में भरतेश्वर सावधान हो कर उठे । दोनों की दृष्टि मिली। दोनों भाई नीचे देखने लगे । वास्तव में महापुरुषों की तो जय और पराजय दोनों लज्जित करने वाली होती है।
भरतेश्वर कुछ पीछे हटे, दंड उठाया और बाहुबली के मस्तक पर जोरदार प्रहार किया। इस प्रहार से बाहुबली का मुकुट टूट कर चूर-चूर हो गया । बाहुबली की आँखें बन्द हो गई। थोड़ी देर में नेत्र खोल कर उन्होंने अपना दंड उठाया और भरतेश्वर की छाती पर जोरदार प्रहार किया। इस प्रहार से भरतेश्वर के सुदृढ़ कवच के टुकड़ेटुकड़े हो गए और वे विव्हल हो गए।
सावधान हो कर भरतेश्वर ने फिर से दंड उठाया और घुमा कर बाहवली के
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