Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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भ० अजितनाथजी x मायावी की अद्भुत कथा
१५१
"तुम कौन हो ? यह स्त्री कौन है ? यहाँ क्यों आये हो ?"
--" राजेन्द्र ! मैं विद्याधर हूँ। यह मेरी पत्नी है । एक दूसरे विद्याधर के साथ मेरा झगड़ा हो गया है । वह लम्पट मेरी इस स्त्री को हरण कर के ले गया था, किंतु मैं अपनी प्रिया को उससे छुड़ा कर ले आया। वह लम्पट फिर भी मेरे पीछे पड़ा हुआ है। मैं पत्नी को साथ रख कर उससे युद्ध नहीं कर सकता। इसलिए मैं भापकी शरण में आया हूँ। आप न्यायी, सदाचारी, परदार-सहोदर, प्रबल पराक्रमी, धर्मात्मा एवं शरणागत-रक्षक हैं । आप मेरी पत्नी को धरोहर के रूप में रखें। मैं इसको आपके रक्षण में रख कर उस दुष्टात्मा का दमन करने जाता हूँ। उसे यमद्वार पहुँचा कर फिर अपनी प्राणप्रिया को ले जाउँगा।
"नरेन्द्र ! अर्थ-लिप्सा पर अंकुश रखने वाले तो मिल सकते हैं। किन्तु भोगलिप्सा पर अंकुश रखने वाले संसार में खोज करने पर भी नहीं मिलते । मैने सभी ओर देखा, किंतु आप जैसा स्वदार-संतोषी एवं परनारी-सहोदरवत् और कोई दिखाई नहीं दिया । आपकी यशध्वजा दिगंत व्याप्त है। इसीलिए वैताढ्य पर्वत से चल कर मैं आपकी शरण में आया हूँ। आप थोड़े दिनों के लिए मेरी पत्नी की रक्षा कीजिए"--मायावी ने हृदयस्पर्शी विनती की।
-" भद्र ! तुमने यह क्या तुच्छ याचना की। मै तेरे शत्रु उस दुष्ट लम्पट को ही उसकी दुष्टता का कठोर दण्ड देने के लिए तत्पर हूँ। तू चिन्ता मत कर और यहाँ सुख से रह"--राजा ने अपने वीरत्व के अनुकूल उत्तर दिया।
--" कृषावतार ! आप केवल मेरी पत्नी की ही रक्षा कीजिए। यही उपकार बड़ा भारी है । क्योंकि चन्द्रमुखी रूप-सुन्दरी का पवित्रतापूर्वक रक्षण करना ही दुष्कर है । आप यही कृपा कीजिए । उस दुष्ट को तो मैं थोड़ी ही देर में मसल कर सदा के लिए सुला दूंगा"--आगत ने अपनी प्रार्थना पुनः दुहराई।
__ --" स्वीकार है वीर ! तुम निश्चित् रहो । तुम्हारी पत्नी यहाँ अपने पितृगृह के समान सुरक्षित रहेगी"---राजा ने आश्वासन दिया।
राजा की स्वीकृति पाते ही वह मायावी उछला और पक्षी के समान आकाश में उड़ गया । राजा ने उस सुन्दरी से कहा--
____ “जाओ बेटी ! तुम अन्तःपुर में प्रसन्नतापूर्वक रहो । मैं वहाँ तुम्हारी सुविधा का सारा प्रबन्ध करवा दूंगा। तुम किसी भी प्रकार की चिन्ता मत करो और जिस वस्तु की आवश्यकता हो........
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