Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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१०.
तीर्थंकर चरित्र
शरीर के अतिरिक्त कुछ है ही नहीं-मेरे पास । फिर हाथी की बात कैसी ? क्या महासती झूठ बोली ? भगवान् ने असत्य सम्वाद भेजा ? नहीं-नहीं, न तो महासतियें झूठ बोली होगी, न भगवान् ने ही असत्य उद्बोधन कराया होगा । उनका आशय द्रव्य हाथी से नहीं, भाव हाथी से होगा"-महर्षि आत्म-निरीक्षण करने लगे । दीर्वकाल की ध्यान-धरा के नीचे दबा हुआ चोर पकड़ में आ गया; --"अरे ! हां, वय में छोटे, किंतु व्रत-पर्याय में ज्येष्ठ ऐसे लघु-बन्धु श्रमणों को वन्दन नहीं कर के अपना बड़प्पन बनाये रखने की भावना मेरे मन में छुपी पड़ी है। मैने कायुत्सर्ग किया, धर्म ध्यान ध्याया, किंतु साधना के पूर्व से ही छुप कर बैठे हुए इस डाकू मानसिंह का मर्दन नहीं किया और छुपे शत्रु को टिकाये रखा । मोहराज का प्रत्यक्ष में तो मुझ पर जोर नहीं चला और उसके अन्य तीन महा सेनापतियों से मैं अजेय रहा, परन्तु मुझ में ही छुप कर मेरी साधना के महाफल से मुझे वंचित रखने वाला यह दुष्ट मानसिंह मुझे धोखा देता रहा और मैने इस ओर देखा ही नहीं । वास्तव में हाथी के रूप में रहे हुए मानसिंह पर में सवार रहा। मेरी कठोर साधना और अडोल ध्यान भी इस दूषित भूमि पर चलता रहा । में कितना अधम हूँ ? भगवान् वृषभनाथ का पुत्र और उनके चरणों में वर्षों तक रहने, उपदेश सुनने और सेवा करने का सुयोग पा कर भी मैं विवेकी नहीं बन सका । धिक्कार है मेरे अभिमान को और शतशः धिक्कार है मेरे अविवेकीपन को। मैं अभी जा कर सभी व्रत-ज्येष्ठ श्रमणों को वन्दना करता हूँ।"
इस प्रकार विचार कर के महान् सत्वशाली महामुनिजी चलने को तत्पर हुए और पांव उठाया। चिन्तन की इस चिनगारी ने शुक्ल ध्यान रूपी वह ज्वाला उत्पन्न की कि मानमहिपाल की अंत्येष्ठि ही हो गई । मान के मरते ही उसकी ओट में रहे हुए सूक्ष्म कोध माया और लोभ भी भस्म हो गए । तत्काल शुक्ल ध्यान की दूसरी ज्योति उत्पन्न हुई और ज्ञानावरण-दर्शनावरण और अन्तराय कम भी जल कर राख हो गए। महर्षि बाहुबलीजी परम वीतराग सर्वज्ञ-सर्वदर्शी भगवान् हो गए। वे वहां से चल कर भगवान् आदिनाथ के समवसरण में उपस्थित हुए और केवल नियों की परिषद् में बैठ गए।
भरतेश्वर का पश्चात्ताप और साधर्मी-सेवा
भगवान ऋषभदेव स्वामी ग्रामानुग्राम विचरते और भव्य जीवों को प्रतिबोध देते हए अष्टाद पर्वत पर पधारे । देव-देवियाँ और इन्द्र-इन्द्रानियाँ भगवान् के समवसरण में
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