Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
१०२
तीर्थकर चरित्र
भक्षण करता है । त्यागे हुए भोगों को पुन: भोगना, इनकी दृष्टि में वमन को चाटने के समान है।"
चक्रवर्ती सम्राट भरतेश्वर समझ गए। उन्हें पश्चात्ताप हुआ-"अभोगी दशा के साधक, भोग सम्बन्धी निमन्त्रण स्वीकार नहीं करते, यह ठीक ही है। मैने बिना विचारे ही आमन्त्रण दिया और निराश हुआ, किन्तु शरीर के लिए भोजन तो आवश्यक होता ही है । मैं इन मुनियों को भोजन करा कर कुछ तो सेवा कर सकेंगा।" इस प्रकार विचार कर के उन्होंने पाँच सौ गाड़े भर कर भोज्य-सामग्री मँगवाई और आहार के लिए निमन्त्रण दिया। तब जिनेश्वर भगवंत ने कहा
"राजन् ! यह औद्देशिक आहार है। निर्दोष माधुकरी करने वाले निग्रंथों के लिए ऐसा आहार त्याज्य है।"
नरेन्द्र ने सोचा--"हाँ, यह भोजन तो मुनियों के लिए ही बना है। इसलिए इसके लिए अग्राह्य है। किन्तु मेरे यहाँ तो ऐसी भोज्य-सामग्री है, जो इनके लिए नहीं बनी । यह (लड्डू, पेठा, पेड़ा, खाजा आदि जो नाश्ता आदि में चलते हैं और कुछ दिन रहने पर भी खराब नहीं होते इनके काम में आ सकेगी।" यह सोच कर उन्होंने मुनियों को उद्देश्य कर नहीं बनाई हुई ऐसी कृत-कारित दोष से रहित सामग्री के लिए निवेदन किया । जिनेन्द्र भगवान् ने कहा;--
"नरेन्द्र ! निग्रंथ ब्रह्मचारियों के लिए 'राजपिण्ड' भी त्याज्य है।
अब तो भरतेश्वर सर्वथा निराश हो गए। उनके मन पर उदासी छा गई । वे सोचने लगे--"अहो ! मैं कितना दुर्भागी हूँ कि मेरी किसी प्रकार की सेवा इन त्यागी निग्रंथों के लिए मान्य नहीं होती। मुझ से तो मेरी प्रजा और वे गरीब निर्धन लोग भाग्यशाली हैं जो इन्हें प्रति लाभते हैं। वे धन्य हैं, कृतपुण्य हैं और मुझसे लाख गुणा उतम हैं....
चक्रवर्ती को चिन्तामग्न देख कर प्रथम स्वर्ग के अधिपति शकेन्द्र ने प्रभु से पूछा-- "भगवन् ! अवग्रह कितने प्रकार का है ?" उत्तर मिला--"पांच प्रकार का ।
यथा--
१ इन्द्र का अवग्रह--जिस वस्तु का प्रत्यक्ष में कोई स्वामी नहीं हो, उस तृण, मुखा पान, कंकर आदि लेने में दक्षिण भरत के साधु-साध्वी को शक्रेन्द्र की आज्ञा लेनी चाहिए। यह इन्द्र की आज्ञा रूप प्रथम अवग्रह हुआ।
२ चक्रवर्ती के राज्य में उनकी आज्ञा लेना।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org