Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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सगर का राज्याभिषेक और प्रभु की प्रव्रज्या
श्री अजितनाथजी ने भाई को समझाया और अंत में भारपूर्वक आज्ञा प्रदान करते हुए कहा--" मैं आज्ञा देता हूँ कि तुम राज्य का भार संभालो। मैं अब यह भार तुम्हें सौंपता हूँ।"
दुखित मन से प्रभु की आज्ञा शिरोधार्य कर के युवराज ने राज्यारोहण स्वीकार किया । प्रभु ने महान् उत्सव के साथ सगरकुमार का राज्याभिषेक किया और स्वयं वर्षीदान देने लगे । वर्षीदान हो चुकने पर शकेन्द्र का आसन चलायमान हुआ। वह प्रभ के समीप आया । अन्य सभी इन्द्र और देव-देविय आई और भगवान् अजितनाथ का दीक्षा महोत्सव हुआ। ‘सुप्रभा' नामकी शिविका में भगवान् को बिराजमान कर के नर-नारियों और देव-देवियों के समूह के साथ महान् धूमधाम से 'जेजेनन्दा जेजे भद्दा'---मंगल शब्दों का उच्चारण करते हुए सहस्राम्रवन उद्यान में लाये।
माघ मास के शुक्ल पक्ष की नौवीं तिथि के दिन, सायंकाल के समय जब चन्द्रमा रोहिणी नक्षत्र में आया,प्रभु ने बेले के तप सहित प्रबजित होने के लिए वस्त्रालंकार उतारे और इन्द्र का दिया हुआ देवदुष्य धारण किया। पंचमुष्ठि लोच किया और सिद्ध भगवंत को नमस्कार कर के सामायिक चारित्र स्वीकार किया। सामायिक चारित्र स्वीकार करते समय भगवान् प्रशस्त भावों के उत्तम रस युक्त अप्रमत्त गुणस्थान में स्थित थे। उन्हें उसी समय विशेष रूप से मनःपर्यय ज्ञान उत्पन्न हो गया। यह जीवों के मनोगत भावों को बताने वाला चौथा ज्ञान है। भगवान् के साथ एक हजार राजाओं ने भी प्रव्रज्या स्वीकार की। इन्द्रादिदेव, सगर नरेश और सभी जन अपने-अपने स्थान गये । दीक्षा के दूसरे दिन प्रभु के बेले का प्रथम पारणा, ब्रह्मदत्त राजा के यहां क्षीरान से हुआ। वहां दिव्य वष्टि हई । प्रभु ग्रामानुग्राम विहार करने लगे।
दीक्षित होने के बाद बारह वर्ष तक भगवान् अजितनाथजी छद्मस्थपने विचरते रहे । अब प्रभु की अनादि छद्मस्थता का अंत होने का समय आ गया था । अनादिकाल से लगा हआ कषायों का मल आज पूर्णतया नष्ट होने जा रहा था। पौष शुक्ला ११ के दिन सहस्राम्रवन उद्यान में बेले के तप से घातीकर्मों का घात करने वाली क्षपक-श्रेणी का आरंभ हुआ। ध्यानस्थ दशा में अप्रमत्त नामक सातवें गुणस्थान से प्रभु ने 'अपूर्वकरण' नामक आठवें गुणस्थान में प्रवेश किया ।
श्रुत के किसी शब्द का चिन्तन करते हुए अर्थ चिन्तन में और अर्थ का चिन्तन करते हए शब्द पर ध्यान लगाते हुए, अनेक प्रकार के श्रुत विचार वाले 'पृथक्त्व वितर्क
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