Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थंकर चरित्र
पुत्र था । उस शुद्धभट का लग्न, सिद्धभट ब्रह्मण की सुलक्षणा नामकी पुत्री के साथ हुआ । कालान्तर में शुद्धभट के माता-पिता का देहान्त हो गया और सम्पत्ति भी नष्ट हो गई । यहाँ तक दशा बिगड़ी कि सुभिक्ष होते हुए भी उन्हें रात को भूखा ही सोना पड़ता । निर्धन के लिए तो सुभिक्ष भी दुर्भिक्ष के समान ही होता है । दरिद्रता से पीड़ित शुद्धभट पत्नी को छोड़ कर गुपचुप विदेश चला गया । सुलक्षणा निराधार हो गई । वर्षाऋतु आने पर 'विपुला' नामक प्रवर्तिमी साध्वी आदि उसके घर चातुर्मास बिताने के लिए रह गई । सुलक्षणा ने साध्वी को रहने के लिए स्थान दिया । अब सुलक्षणा प्रतिदिन साध्वी का उपदेश सुनने लगी । धर्मोपदेश सुनने से उसका मिथ्यात्व नष्ट हो गया और सम्यग्दर्शन प्रकट हुआ । वह जीवादि पदार्थों को पदार्थ रूप से जानने लगी। उसने जैनधर्म ग्रहण किया । उसे विषयों के प्रति अरुचि हुई । उसने अणुव्रत ग्रहण किये । साध्वीजी, सुलक्षणा को श्राविका बना कर, वर्षाकाल समाप्त होते ही विहार कर गई ।
कुछ काल बीतने पर शुद्धभट भी विदेश से बहुत सा धन कमा कर घर आया । उसने पत्नी से पूछा -- "प्रिये ! तेने मेरा दीर्घकाल का वियोग किस प्रकार सहन किया ?" - " प्रियवर ! आपका वियोग असह्य था, किन्तु महासती श्री विपुला साध्वीजी के योग से वियोग दुःख टला और मैने कल्याणकारी धर्म पाया । मैने सभ्यग्दर्शन प्राप्त किया " - - सुलक्षणा ने कहा ।
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" सम्यग्दर्शन क्या चीज है ? कैसा होता है वह " - शुद्धभट ने जिज्ञासा व्यक्त की । 'सुदेव में देव -बुद्धि, सद्गुरु में गुरु- बुद्धि और शुद्धधर्म में धर्म- बुद्धि रखना, इन पर दृढ़ श्रद्धा रखना, सम्यग्दर्शन है । इसके विपरीत कुदेव, कुगुरु और अधर्म में आस्था रखना, इनमें धर्म मानना, मिथ्यादर्शन कहाता है ।"
राग-द्वेष आदि समस्त दोषों को नष्ट कर के परमवीतराग बनने वाले, सर्वज्ञ सर्वदर्शी तीनों लोक के पूज्य, हितोपदेष्टा अरिहंत परमेश्वर ही सुदेव हैं। इनका ध्यान करना, उपासना करना और इनकी शरण में जाना । यदि ज्ञान चेतना हो, तो इनके धर्म का प्रचार करना । यह सुदेव आराधना है । जो परमतारक देव तो कहाते हैं, परन्तु शस्त्र और अक्षसूत्रादि राग-द्वेष के चिन्हों को धारण करते हैं, जिनके साथ स्त्री रही हुई है, जो उपासकों पर अनुग्रह और दूसरों पर कोप करने में तत्पर हैं और जो नाटय, अट्टहास और संगीत आदि में रस लेते हैं, वे सुदेव नहीं हो सकते । उनकी आराधना से मोक्षफल प्राप्त नहीं हो सकता । सुदेव नहीं हैं ।
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