Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थकर चरित्र
हो और ज्ञान, दर्शन और चारित्र, मोक्ष का मार्ग नहीं हो तथा विश्व में इस प्रकार सम्यग्दृष्टि नहीं हो, तो इस अग्नि में डालने पर मेरा यह पुत्र जीवित नहीं रहे और जल जाय और जो यह सब सत्य हो, तो मेरा यह पुत्र निर्विघ्न रहे और अग्नि शान्त हो जाय।" इस प्रकार कह कर उसने अपने पुत्र को अग्नि में डाल दिया। यह देख कर वहाँ बैठे हुए सभी लोग हाहाकार कर उठे और बोले---"यह दुष्ट है इसने कोधी बन कर पुत्र हत्या की है।" इस प्रकार तिरस्कार करने लगे। किन्तु ज्योंही उन्होंने अग्नि की ओर देखा, तो उनके आश्चर्य का पार नहीं रहा । उन्होंने देखा--अग्नि के स्थान पर एक विशाल कमल है और उस कमल पर बच्चा आनन्दपूर्वक खेल रहा है। वहाँ एक सम्यक्त्व सम्पन्न देवी रहती थी। उसने बालक की रक्षा की। पूर्व के मनुष्य-भव में संयम की विराधना कर के वह व्यन्तर जाति की देवी हुई थी। वह केवली भगवान् के उपदेश से प्रबुद्ध हो कर सम्यग्दृष्टियों की सेवा करने में तत्पर रहती थी। इस समय सम्यक्त्व का माहात्म्य प्रकट करने के लिए उसने यह प्रभाव दिखाया था। ब्राह्मण लोग यह प्रभाव देख कर आश्चर्यान्वित हुए । शुद्धभट ने घर जा कर अपनी पत्नी से सारी घटना कह सुनाई । पत्नी ने कहा-- "आपने यह क्या किया ? यह तो अच्छा हुआ कि सम्यग्दृष्टि देवी निकट थी और उसने तत्काल सहायता की, अन्यथा पुत्र जल जाता, तो लोग, धर्म की निन्दा करते और धर्म की हीनता होती । ऐसा दुःसाहस नहीं करना चाहिए।"
इसके बाद सुलक्षणा श्राविका अपने पति को ले कर यहाँ धर्म श्रवण करने आई। शुद्धभट ने उस घटना को लक्ष कर प्रश्न किया था, जिसे मैने सम्यक्त्व का प्रभाव बताया। भेट दम्पत्ति ने दीक्षा ली और विशुद्ध साधना से केवलज्ञान केवलदर्शन प्राप्त किया।
एक बार भगवान् अजितनाथजी साकेत नगर के उद्यान में पधारे । इन्द्रादि देवों और सनरादि राजाओं तथा अन्य नरनारियों की विशाल धर्म-परिषद् जुड़ी । भगवान् ने धर्मदेशना दी।
मेघवाहन और सगर के पूर्वभव
वैताढ्य पर्वत पर 'पूर्णमेघ' नाम का विद्याधर रहता था। उसके पुत्र का नाम · मेघवाहन' था। वहीं 'सुलोचन' नाम वाला एक दूसरा व्यक्ति रहता था। उसके पुत्र का नाम ‘सहस्रलोचन' था। पूर्णमेघ ने पूर्वबद्ध वैर से प्रेरित हो कर सुलोचन को मार डाला।
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