Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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भ० अजितनाथजी - तीर्थंकर और चक्रवर्ती का जन्म
१२५
पुण्योदय से अन्य राजागण अपने आप उनके प्रति भक्तिमान हो कर आधीन हो गए। प्रजा में न्याय, नीति और सौहार्द्र की वृद्धि हुई । सुख-सम्पत्ति से राज्य की प्रजा संतुष्ट हुई। दुष्काल, रोग और विग्रह का तो नाम ही नहीं रहा । इस प्रकार तिरपन लाख पूर्व तक प्रजा का पालन करते रहे । अब उनके भोगावली कर्म बहुत कुछ क्षीण हो चुके थे। निष्क्रमण का समय निकट आ रहा था। एक बार एकान्त में चिन्तन करते हुए आपने विचार किया कि--"अब मुझे यह राज्य-प्रपञ्च, भोग और सांसारिक सम्बन्धों को छोड़ कर अपना ध्येय सिद्ध करने के लिए तत्पर हो जाना चाहिए। बन्धनों का छेदन कर निर्बन्ध, निष्कलंक और निर्विकार होने के लिए साधना करने में अब विलम्ब नहीं करना चाहिए।" इस प्रकार का चिन्तन उनके मन में होने लगा। उधर लोकान्तिक देव भी स्वर्ग से चल कर प्रभु के सम्मुख उपस्थित हुए और विनयपूर्वक निवेदन करने लगे; --
"भगवान् ! आप स्वयंबुद्ध हैं । हम आपको क्या उपदेश करें ? फिर भी हम अपना कर्तव्य पालन करने के लिए निवेदन करते हैं कि-प्रभो ! अब धर्म-तीर्थ का प्रवर्तन कर के भव्य जीवों का उद्धार करें।"
इस प्रकार निवेदन किया और प्रणाम कर के स्वधाम चले गये । देवों के निवेदन से महाराजा अजितनाथजी की विचारणा को प्रोत्साहन मिला और उन्होंने तत्काल युवराज सगर कुमार को बुला कर कहा;--
"भाई ! अब इस राज्यभार को तुम वहन करो। मैं अब इस प्रपञ्च से निकल कर निवत्ति के परम पथ पर प्रयाण करना चाहता हूँ। सम्हालो इस भार को। मैं अब ऐसे किसी भी बन्धन में रहना नहीं चाहता।"
श्री अजितनाथजी के उपरोक्त वचन, युवराज सगर के लिए क्लेश का कारण बन गये । वे गद्गद् हो कर बोले ;--
"देव ! मैने आपका ऐसा कौन-सा अपराध किया, जिसके दण्ड स्वरूप आप मुझ पर यह भार लादना चाहते हैं और मुझे छोड़ कर पृथक् होना चाहते हैं। मैं आपकी छाया के बिना अकेला कैसे रह सकूँगा । आपको खो कर पाया हुआ यह राज्य मेरे लिए दुःखदायक ही होगा। मुझे जो सुख आपकी सेवा में मिलता है, वह राज्य में कदापि नहीं मिलेगा। इसलिए प्रभो ! अपना यह विचार छोड़ दीजिये और मुझे आप अपनी छाया में ही रहने दीजिये। यदि आपको संसार त्याग कर निग्रंथ बनना ही है, तो मैं भी आपके साथ ही रहूँगा। मैं आपसे पृथक् नहीं हो सकता।"
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