Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थकर चरित्र
से पंगु हो जाता है । सुन्दर आँखों वाला अन्धा हो जाता है । इसी प्रकार मनु यों का शरीर यौवन और वैभव परिवर्तनशील है । सुन्दर से असुन्दर, अरम्य, अक्षम हो कर नष्ट हो जाता है। इस प्रकार विचार करते मुझे वैराग्य हो गया और मैं महाव्रतधारी श्रमण बन गया।"
आचार्यश्री की वाणी सुन कर राजा भी विरक्त हो गया और राज्य का भार पुत्र को सौंप कर आचार्यश्री के पास प्रव्रज्या स्वीकार कर ली । संयम और तप का शुद्धतापूर्वक पालन करते हुए और उत्तम आराधना करते हुए विमलवाहन मुनिवर ने तीर्थकर नामकर्म का बन्ध किया और अनशन कर के विजय नाम के अनुत्तर विमान में उत्पन्न हुए । वहाँ उनकी देह एक हाथ प्रमाण लम्बी और विशुद्ध पुद्गलों से प्रकाशमान थी। आयु थी तैतीस सागरोपम प्रमाण । उत्तम सुखों में काल निर्गमन करते हुए देवभव पूर्ण किया।
तीर्थंकर और चक्रवर्ती का जन्म
जम्बूद्वीप के भरत-क्षेत्र में विनिता नाम की नगरी थी। यह वही नगरी थी, जहाँ भगवान आदिनाथ हुए । भगवान् आदिनाथ के बाद सम्राट भरत आदि असंख्य नरेश विनिता नगरी की राजपरम्परा-इक्ष्वाकु वंश में हए। उनमें से बहत-से निग्रंथ मोक्ष प्राप्त हुए और बहुत-से अनुत्तर विमान में गये । उसी इक्ष्वाकु वंश में जितशत्रु'नाम का महापराक्रमी राजा हुआ। उसके छोटे भाई का नाम सुमित्रविजय था । यह भी असाधारण पराक्रमी था और युवराज पद को सुशोभित कर रहा था। जितशत्रु नरेश के विजयादेवी' नाम की महारानी थी और सुमित्रविजय की पत्नी का नाम 'वैजयंती' था। वे दोनों महिलाएँ रूप और गुणों से सुशोभित थी।
वैशाख-शुक्ला तेरस को विमल वाहन मुनिराज का जीव, महारानी विजयादेवी की कक्षि में, विजय नाम के अनुत्तर विमान से आ कर उत्पन्न हुआ। उस रात के अंतिम प्रहर में महारानी ने चौदह महा स्वप्न देखे । उसी रात को युवराज सुमित्रविजय की रानी वैजयंती ने भी चौदह महास्वप्न देखे, किन्तु श्रीमती विजयादेवी के स्वप्नों की प्रभा की अपेक्षा इनके स्वप्नों की प्रभा कुछ मन्द थी । स्वप्न-पाठकों से स्वप्नों का अर्थ कराया। उन्होंने गम्भीर विचार के बाद कहा कि महारानी विजयादेवी के गर्भ में लोकोत्तम लोकनाथ दीर्थकर भगवान का जीव आया है और युवराज्ञी वैजयंती के गर्भ में चक्रवर्ती सम्राट भरत के समान चक्रवर्ती होने वाला महा भाग्यशाली जीव आया है।
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