Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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भ० ऋषभदेवजी--भरत-बाहुबली का द्वंद्व-युद्ध
इसके बाद अपनी बांयी भुजा पर बहुत सी मुदढ़ सा कलें बँधवाई और सैनिकों को सम्बोध कर कहा;--
_ 'योद्धाओं ! जिस प्रकार बैल, गाड़े को खिच कर ले जाते हैं, उसी प्रकार उस किनारे पर खड़े रह कर तुम सभी, इन सांकलों को अपने सम्मिलित बल से एक साथ खिचो और मुझे इस खड्डे में गिरा दो। देखो, तुम यह मत सोचना कि इससे मुझे दुःख होगा। इस समय तुम्हारा लक्ष्य अपनी पूरी शक्ति लगा कर मुझे इस खड्डे में गिराना ही होना चाहिए । मैं तुम्हें आज्ञा देता हूँ कि अपनी सम्पूर्ण शक्ति लगा कर मुझे खिचो ।
भरतेश्वर का आदेश होने पर भी योद्धागण तय्यार नहीं हुए, तब उन्हें आग्रह पूर्वक दृढ़ स्वर में आज्ञा दी गई। योद्धागण उठे । उन्होंने दूसरे किनारे पर खड़े रह कर साँकलें पकड़ी और खिचने लगे।
भरतेश्वर ने सैनिकों को उत्साहित करते हुए विशेष बल लगाने का कहा । जब सभी का बल एक साथ लगा. तो कौतक करने के लिए भरतेश्वर ने अपना हाथ थोडा लम्बा कर दिया । योद्धागण सभी एक बल से झूम गए, किन्तु भरतेश्वर को एक अंगुल भी नहीं खिसका सके । अन्त में भरतेश्वर ने झटके के साथ अपना हाथ समेट कर छाती पर चिपका लिया, तो साँकले खिचने वाले सैनिक धड़ाम से एक दूसरे पर गिर गए। योद्धाओं को महाराजाधिराज के बल का पता लग गया। उन्हें विश्वास हो गया कि भरतेश्वर भी महान् बलाधिपति हैं । उनकी शंका नष्ट हो गई।
भरत-बाहुबली का दंन्द-युद्ध
इसके बाद भरतेश्वर युद्ध भूमि की ओर चले और बाहुबलीजी भी आये । सब से पहले दोनों बन्धुओं ने दृष्टि-युद्ध करने का निश्चय किया । युद्ध-भूमि में दोनों प्रतिद्वंद्वी वीर, शक्र और ईशान इन्द्र के समान सुशोभित हो रहे थे। दोनों ओर के सेनापति अधिकारी और सैनिक, आस-पास पंक्तिबद्ध खड़े रह कर उनका अशस्त्र युद्ध देख रहे थे।
सर्व प्रथम दृष्टि-युद्ध प्रारंभ हुआ। एक दूसरे को अनिमेष दृष्टि से देखने लगे। ध्यानस्थ योगी के समान, बहुत देर तक दोनों एक दूसरे को स्थिर दृष्टि से देखते रहे । किंतु अंत में भरतेश्वर के नेत्रों में से पानी बहने लगा और आँखें बन्द हो गई। देवों ने बाहुबलीजी का जयनाद किया और उन पर पुष्प वष्टि की। उनके पक्ष की ओर से
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