Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थकर चरित्र
जयघोष किया गया और विजय के बाजे बजाये गये । भरतेश्वर के सेनाधिकारियों और सुभटों के हृदय को आघात लगा। एक ओर हर्षावेश, तो दूसरी ओर विफलताजन्य घोर उदासी । यह दशा देख कर बाहुबलीजी बोले --
___ "आप यह नहीं समझें कि मैं अनायास ही जीत गया । अभी तो यह पहला ही युद्ध हुआ। आप चाहें तो वाक् युद्ध कर लें।"
चक्रवर्ती तय्यार हो गए। उन्होंने भयंकर सिंहनाद किया। जिस प्रकार मेघ की भयंकर गर्जना होती है और महानदी की महान् वेगवती बाढ़ आती है और उसका गंभीरतम नाद होता है, उससे भी अधिक भयंकर सिंहनाद हुआ । घोड़े रास तुड़ा कर भागने लगे। हाथियों को भागने से रोकने के लिए अंकुश भी व्यर्थ रहा । ऊँट नाथ के खिचाव को भी नहीं मानते हुए वेगपूर्वक दौड़ने लगे । भरतेश्वर के सिंहनाद ने बड़े-बड़े शूरवीर मनुष्यों के भी हृदय दहला दिये।
इसके बाद बाहुबलीजी ने सिंहनाद किया। उनका सिंहनाद भरतेश्वर के सिंहनाद से विशेष भयंकर हुआ । इस महाघोष को सुन कर सर्प भूमि में घुसने लगे । समुद्र में रहे हए मगर-मत्स्यादि भयभीत हो कर सपाटी पर से भीतर घुस कर तल तक पहुँचने लगे। पर्वत काँपने लगे। मेघगर्जना के साथ कड़ाके की बिजली गिरी हो--इस आभास से मनुष्यगण भयभ्रान्त हो भूमि पर लेट गए। पृथ्वी धुजने लगी और देवगण भी व्याकुल हो गए । बाहुबली के सिंहनाद के बाद भरतेश्वर ने फिर सिंहनाद किया । यों सिंहनाद होतेहोते भरतेश्वर की गर्जना का घोष मन्द होने लगा और बाहुबलीजी के सिंहनाद का घोष बढ़ कर रहने लगा। इसमें भी बाहुबलीजी विजयी हुए।
अब बाहु युद्ध की वारी थी। दोनों भाई भिड़ गए । मल्ल-युद्ध होने लगा। कभी दोनों परस्पर गुथ जाते, कभी पृथक् हो कर फिर करस्फोट पूर्वक उछलते-कूदते हुए आ कर गुथ जाते । कभी भरतेश्वर नीचे आ जाते, तो कभी बाहुबली । दोनों महाबलियों के वस्त्र और शरीर धूल-धूसरित हो गए। बहुत देर तक मल्ल-युद्ध होता रहा । अंत में बाहुबलीजी ने भरतेश्वर को उठा कर आकाश में उछाल दिया--फेंक दिया। बाहुबलीजी द्वारा फेंके हए भरतेश्वर, धनुष में से छूटे बाण की तरह आकाश में बहुत ऊँचे तक चले गए। आकाश से नीचे आते समय सेना में हाहाकार मच गया। यह देख कर बाहुबलीजी अपने को धिक्कारने लगे--"अहो ! में कितना अधम हूँ । पिता के समान पूज्य ज्येष्ठ-भ्राता पर प्रहार करते और उन्हें सीमातीत कष्ट पहुँचाते कुछ भी संकोच नहीं किया । धिक्कार है
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