Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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भ० ऋषभदेवजी--दिशाकुमारी देवियों द्वारा शौच-कर्म
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भगवान् का जन्म जान कर, जन्मोत्सव करने के लिए यहाँ आई हैं । आप हमें देख कर भयभीत नहीं होवें।"
इस प्रकार कह कर उन्होंने पूर्वदिशा की ओर द्वार वाले एक विशाल ‘सूतिकागृह' की रचना की । इनके बाद संवर्तक वायु चला कर सूतिकागृह के आसपास की एक योजन प्रमाण भूमि के कांटे, कंकर, कचरा आदि को दूर फेंका और भगवान् को प्रणाम कर के मधुर स्वर से गान करने लगी।
इसी प्रकार मेरु पर्वत के ऊपर रहने वाली ऊर्ध्वलोक-वासिनी आठ दिशाकुमारियाँ भी आई। उन्होंने भी प्रणाम कर के अपना परिचय दिया और मेघ की विकूर्वणा कर के सुगन्धित जल की मंद-मंद वृष्टि की और उठी हुई धूल को दबाया । पाँचों वर्ण के सुगन्धित पुष्पों की वृष्टि कर के पृथ्वी को सुशोभित बनाई । फिर गायन कर के अपना हर्ष व्यक्त करने लगी। इसी प्रकार रूचक पर्वत के पूर्व की ओर रहने वाली आठ दिशा कुमारियाँ आई और अपने हाथ में दर्पण ले कर गीत गाती हुई खड़ी रही । दक्षिण दिशावाली आठ दिग्कुमारी देवियाँ हाथ में कलश ले कर खड़ी रही । पश्चिम रूचक की आठ देवियें हा में पंखा ले कर गाती हुई खड़ी रही। उत्तर रूचक की आठ देवियें चँवर लिये हए, रूचक की विदिशा में रहने वाली चार देवकुमारिये दीपक ले कर और रूचक मध्य की चार दिशाकुमारी देवियां आकर नाभिनाल का छेदन कर भूमि में गाड़ती है और रत्नों से गड्डे को भर कर के गायन करती है।
- इसके बाद उन देवियों ने जन्मगृह के पूर्व, उत्तर और दक्षिण में तीन कदलीगृह की रचना की और उनमें देवविमान जैसे चौक और सिंहासन आदि की व्यवस्था की। इसके बाद एक देवी ने तीर्थकर को अपने हाथ में लिये, दूसरी चतुर दासी के समान मातेश्वरी का हाथ पकड़ कर दक्षिण दिशा के कदलीगृह में ले गई । वहाँ माता और पुत्र को सिंहासन पर बिठाया और लक्षपाक तेल से धीरे-धीरे मर्दन करने लगी। फिर उबटन किया। इसके बाद पूर्व दिशा के गृह में ले जा कर स्वच्छ जल से स्नान कराया। सुगन्धित कषाय वस्त्रों से उनके शरीर को पोंछ कर गोशीर्ष चन्दन का विलेपन किया और दोनों को दिव्य वस्त्राभूषण पहिनाये। इसके बाद उत्तर दिशा के मण्डप में ले गई । वहाँ उन्होंने प्रचलित क्रम से गोशीर्ष चन्दन की लकड़ी से सुगन्धित द्रव्यों का हवन आदि क्रिया कर के, भगवान् को दीर्घ आयु वाले होने का आशीर्वाद दिया, फिर माता और कुमार को सूतिकागृह में सुला कर मंगलगान गाने लगी।
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