Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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भ० ऋषभदेवजी -- इन्द्रों का आगमन और जन्मोत्सव
इसके बाद कुबेर ( वैश्रमण ) देव को आज्ञा दे कर सोना, चाँदी आदि और उपयोग में आने योग्य बहुमूल्य सिंहासनादि उपकरणों से जिन भवन को परिपूर्ण कराया । इसके बाद आज्ञाकारी देवों के द्वारा चारों निकाय के देवों में शकेन्द्र ने यह उद्घोषणा करवाई --
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"यदि किसी भी दुष्ट प्रकृति वाले देव ने, जिनेश्वर और उनकी मातेश्वरी का अनिष्ट चिन्तन किया, तो उन्हें सौधर्मेन्द्र कठोर दण्ड देंगे । उसके सिर के टुकड़े-टुकड़े कर दिये जायेंगे ।'
इस प्रकार की उद्घोषणा के बाद इन्द्र ने भगवान् के हाथ के अंगूठे में अनेक प्रकार के उत्तमोत्तम रसों से भरी हुई अमृतमय नाड़ी (नस) का संक्रमण किया। जिससे अंगुष्ठ चूसने से ही उनकी क्षुधा गान्त हो जाय । बाल तीर्थंकर माता का स्तन पान नहीं करते । इसलिए यह व्यवस्था की गई । इसके बाद धात्री - कर्म करने के लिए इन्द्र ने पाँच अप्सराओं की नियुक्ति की ।
मेरु पर्वत पर जन्मोत्सव हो चुकने पर शकेन्द्र, भगवान् को रखने के लिए आये और बहुत-से देव और शेष इन्द्र, मेरु पर्वत से ही रवाना हो कर, देवों के निवास रूप नन्दीश्वर द्वीप पर गये । शकेन्द्र भी प्रभु को रख कर नन्दीश्वर द्वीप पर गये और अठाई महोत्सव कर के सभी देव अपने-अपने स्थान पर गये ।
प्रातःकाल होने पर भगवती मरुदेवा जाग्रत हुई। प्रभु का जन्म और देवागमन आदि बातें उनके लिए स्वप्नवत् थी । उन्होंने नाभि राजा को सारा वृत्तान्त सुनाया । वे भी आश्चर्यान्वित हुए। प्रभु की जंघा पर वृषभ का लांछन था, तथा माता ने चौदह स्वप्न में से प्रथम स्वप्न में वृषभ देखा था, इसलिए प्रसन्न हो कर माता-पिता ने प्रभु का नाम 'ऋषभ और प्रभु के साथ जन्मी हुई बालिका का नाम 'सुमंगला' रखा । प्रभु आनन्दपूर्वक बढ़ने लगे । इन्द्र द्वारा नियुक्त पाँच धात्री अप्सराएँ निरन्तर प्रभु की सेवा में रहने लगी x |
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+ यह इन्द्र की भक्ति थी, अन्यथा क्षीरधात्री दुग्ध-पान कराती ही है ।
* गर्भ में आना, जन्म लेना, जन्मोत्सव, लग्नोत्सव, राज्याभिषेक आदि क्रियाएँ सांसारिक होती है । ये उदय भाव की क्रियाएँ हैं। जिस प्रकार संसार में हम सभी ये क्रियाएँ करते हैं, उसी प्रकार ये भी हैं । इनका निर्ग्रन्थ-धर्म से कोई सम्बन्ध नहीं है। ये सभी क्रियाएँ आश्रव, बन्ध और आरम्भयुक्त है, साबय है । स्वयं भादिनाथ भी जन्म, बाल और यौवनादि सांसारिक अवस्था में चतुर्थ गुणस्थानयुक्त
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