Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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भ० ऋषभदेवजी--प्रभु के शरीर का शिख नख वर्णन
४७
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गज आदि रूप बन कर भगवाम् का वाहन बनता । इस प्रकार क्रीड़ा करते हुए भगवान् बढ़ने लगे।
___ अंगुष्ठपान की अवस्था बीत जाने के पश्चात् जिनेश्वर, सिद्ध-अन्न (पकाया हुआ अन्न) भोजन में लेते हैं, किंतु ऋषभदेव तो देवकुरू. उत्तरकुरू क्षेत्र से, देवों द्वारा लाये हुए कल्पवृक्षों के फलों का ही भोजन करने * और क्षीरसमुद्र के जल का पान करने लगे । इस प्रकार बाल-वय व्यतीत होने पर भगवान् यौवनावस्था को प्राप्त हुए ।
प्रभु के शरीरमा शिरव-नरख वर्णन
प्रभु का मस्तक अत्यन्त ठोस, स्नायुओं से भली प्रकार बँधा हुआ, पर्वत के शिखर के समान आकार वाला और पत्थर की पिण्डी के समान गोल तथा श्रेष्ठ लक्षणों से युक्त था। उनके बाल सेमल वल के फल की रूई के समान कोमल, सुलझे हुए, सुन्दर चमकीले, घुघराले और उत्तम लक्षण युक्त थे । बालों का रंग हर्षित भ्रमर और काजल के समान काला था । बालों के स्थान की त्वचा निर्मल, स्वच्छ और दाडिम के फलों के समान लाल थी। मस्तक भाग, छत्र के आकार का था । ललाट अष्टमी के चन्द्रमा के आकार जैसा था। चन्द्रमा के समान सौम्य मुख था। उनके कान मनोहर, मुख से जुड़े हुए स्कन्ध तक लम्बे और प्रमाण युक्त थे दोनों गाल भरे हुए मांसल और सुन्दर थे । भौहें झुके हुए धनुष के समान बाँकी और बादल की रेखा के समान पतली, काली कान्ति से युक्त थी । आँखें, खिले हए श्वेत कमल के समान थी। जिस प्रकार पत्रयक्त कमल सुशोभित होता है है. उसी प्रकार बरौनी युक्त श्वेत आँखें शोभा पा रही थी। नासिका गरूड़ की चोंच क समान लम्बी, सीधी और ऊँची थी । ओष्ठ, विशुद्ध मंगे और बिम्ब फल के समान लाल थे । दाँतों की पंक्ति निर्मल चंद्र, शंख, गो-दुग्ध, फेन, कुन्द के पुष्प, जल-कण और कमल-नाल के समान श्वेत थी । अखण्ड, परस्पर मिले हुए स्निग्ध और सुन्दर दाँत थे। दंत-पंक्ति के बीच में विभाजक रेखाएँ दिखाई नहीं देती थी । ताल और जिव्हा, तपे हुए सोने के समान लाल
* क्योंकि उस समय भारत के मनुष्य फलाहार ही करते थे, न तो उस समय अन्न पकाने के काम में आने वाली बादर अग्नि ही यहाँ थी और न पकाने की विधि ही कोई जानता था ।
+ यह वर्णन औपपातिक सूत्र के आधार पर दिया है। श्री हेमचन्द्राचार्य ने नख-शिख वर्णन किया, किन्तु जिनेश्वरों के सरीर का वर्णन 'शिख-नख' होता है।
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