Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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भ० ऋषभदेवजी - कर्म भूमि प्रारम्भ- राज्य स्थापना
स्थापित किया । गाय, बैल, भैंस आदि पशुओं को भी उपयोग के लिए ग्रहण किये ।
कुछ समय बाद कल्पवृक्ष नष्ट हो गए और साधारण वृक्ष उत्पन्न हुए। उस समय लोग कन्द, मूल, फल और गेहूँ, चनादि धान्य, कच्चे और छिलके सहित ही खा जाते थे । कच्चे धान्य के खाने से उनकी पाचन क्रिया बिगड़ी ओर पेट में गड़बड़ी उत्पन्न हुई, तो वे श्री ऋषभ नरेश के पास आये और निवेदन किया, तब नरेश ने कहा - " तुम धान्य को साफ कर के छिलके हटा कर खाओ ।" कुछ दिन बाद यह भी नहीं पचा, तो फिर नरेश के पास आये । प्रभु ने पानी में भिगो कर नरम होने पर खाने का निर्देश दिया । कुछ दिन बाद, भीगा हुआ अन्न भी नहीं पचने लगा, तो नरेश ने उस भीगे हुए अन्न को मुष्टि या बगल में दबा कर और शरीर की गर्मी दे कर खाने की सलाह दी। जब यह भी कष्ट कर हुआ, तो लोग दुःख का अनुभव करने लगे । इतने में वृक्षों के परस्पर घर्षण से अग्नि उत्पन्न हुई और तृण- काष्ठादि जलने लगे। नव उत्पन्न बादर अग्नि को लोग आश्चर्य - पूर्वक देखने लगे और प्रकाशमान अग्नि को रन समझ कर ग्रहण करने को झपटे, किंतु इससे उनके हाथ जले। हाथ जलने पर वे श्री ऋषभ नरेश के पास गये। नरेश ने कहा
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' स्निग्ध और रूक्ष काल के योग से अग्नि उत्पन्न हुई है। अग्नि की उत्पत्ति न तो
एकान्त स्निग्ध काल में होती है और न एकान्त रूक्ष काल में। तुम उसे हाथों से मत छुओ। उनके आस-पास के घास आदि को हटा दो, जिससे वह फैले नहीं । फिर उसमें धान्य आदि को पका कर खाओ।" उन अनजान लोगों ने जब धान्य और फलों को अग्नि में डाला, तो वे जल गये और वे खड़े-खड़े देखते ही रहे । वे फिर नरेश के पास आये और कहा - " " स्वामिन् ! अग्नि तो भुक्खड़ है । वह सभी चीजें खा गई ।” प्रभु ने गीली मिट्टी का एक पिंड लिया और उसे फैला कर बताते हुए कहा- - " तुम इस प्रकार मिट्टी का पात्र बना कर उसे सुखालो और उसमें धान्य रख कर अग्नि पर रखो और पकाओ । वह जलेगा नहीं और तुम्हारे खाने योग्य हो जायगा ।" मिट्टी का पात्र बना कर आदि नरेश ने सर्वप्रथम कुंभकार का शिल्प प्रकट किया। इसके बाद घर बनाने की कला बताई । फिर वस्त्र-निर्माण कला, केश कर्त्तन की कला, चित्रकला आदि कलाएँ दिखाई । अन्न उत्पन्न करने के लिए कृषि कर्म और व्यापार आदि बताये । साम, दाम, दंड और भेद, ऐसे चार उपाय से नागरिक एवं राष्ट्रीय व्यवस्था कायम की। अपने ज्येष्ठ पुत्र 'भरत को बहत्तर कलाएँ सिखाई । भरत ने अपने भाइयों और पुत्रों आदि को उन कलाओं की शिक्षा दी । बाहुबली को हस्ति, स्त्री और पुरुष के लक्षणों का बोध दिया । ब्राह्मी
अश्व,
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