Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
तीर्थकर चरित्र
" मैं मानता हूँ कि आप सभी शूरमा हैं। आपको जीवन से भी अधिक विजय प्रिय है। आपके सेनापति महान् योद्धा और रण-नीति पारंगत हैं । इनकी अधीनता में लड़ने वाले सदा विजयी ही होते हैं। विपक्ष की अपेक्षा अपनी सेना भी विशाल है और शस्त्रास्त्र भी उच्चकोटि के हैं। इस प्रकार की विशिष्टता का फल तभी प्राप्त होगा, जब कि आप सभी, सदा सावधान रह कर अपने कर्तव्य का पालन करने में जी-जान से जुट जावें।"
'वीर सैनिकों ! आपका पराक्रम निर्णायक होगा। इसी पर साठ हजार वर्ष के पराक्रम से प्राप्त विजयश्री का स्थायित्व रहा हुआ है। यह अन्तिम युद्ध होगा और इसमें आपकी विजय निश्चित् है । साहस के साथ प्रस्थान करो और विजयी बनो । मैं आप सभी की मंगल कामना करता हुआ आपके साथ हूँ।"
"महाराजाधिराज की जय ! हम अवश्य विजयी होंगे। हमारा शौर्य शत्रु-पक्ष को परास्त कर के रहेगा । चक्रवर्ती सम्राट भरतेश्वर की जय । महाबाहु सेनापति सुसेन की जय ।"
विशालतम सेना के जयघोष से प्रकाश गुंज उठा । दिशाएँ कम्पायमान हो गई और सारी प्रकृति ही भयाक्रान्त हो गई। वातावरण की विक्षुब्धता ने देवों को आकर्षित किया। उन्होंने भ० ऋषभदेव के पुत्रों में युद्ध और लाखों मनुष्यों के रक्तपात होने की तय्यारी देखी। वे तत्काल युद्ध-भूमि में आये और युद्ध प्रारंभ होने के क्षणों में ही दोनों सेनाओं के मध्य में खड़े रह कर कहा
___ "हम दोनों पक्षों से मिल कर युद्धबन्दी का प्रयत्न करते हैं, तब तक तुम ठहरो और प्रतीक्षा करो । तुम्हें भ० ऋषभदेव की आण है।"
भगवान की आज्ञा देने से दोनों पक्ष स्तब्ध हो गये । उनका उत्साह--युद्धोन्माद ठण्डा हो गया । प्रहार करने के लिए उठाए हुए अस्त्र नीचे झुक गए।
x देवों ने भरतेश्वर से निवेदन किया--
"नरदेव ! आप जैसे योग्य एवं आदर्श ऋषभ-पुत्रों को यह विश्व-संहार कैसे भाया ? अहिंसा-धर्म के परम प्रवर्तक भ० आदिनाथ के पुत्रों और भरत-क्षेत्र के आदि नरेशों के हृदय में इतनी उत्कृष्ट हिंसा ? करोड़ों मनुष्यों का संहार कर पृथ्वी, नदी-नालों और सरोवरों को रक्त से भरने की उत्कृष्ट भावना ? यह क्या अनर्थ कर रहे हैं--
x'त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र' में देवों के आने का उल्लेख है । अन्य स्थलों पर इन्द्र का आगमन बताया है। बह मतान्सर है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org