Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थंकर चरित्र
को दाहिने हाथ से अठारह प्रकार की लिपि सिखाई और सुन्दरी को बायें हाथ से गणित, तोल, नाप आदि बताये और मणि आदि के उपयोग करने की विधि बताई। नरेश के आदेश से वादी-प्रतिवादी का विचार, राजा, अध्यक्ष और कुलगुरु की साक्षी से चलने लगा । धनुर्वेद, आयुर्वेद, अर्थशास्त्र, युद्ध आदि तथा माता, पिता, भ्राता आदि सम्बन्ध उसी समय से चलने लगे । प्रभु का विवाह देख कर तद्नुसार विवाह होने लगे।
उपरोक्त सभी कार्य सावध हैं, फिर भी श्री आदि नरेश ने उदयानुसार, अपने उत्तरदायित्व को निभाने के लिए प्रवृत्ति की ।
इसके बाद उग्रकुल, भोगकुल, राजन्यकुल और क्षत्रियकुल-ऐसे चार भेद से कुल की रचना की। उग्र-दण्ड के अधिकारी-आरक्षक को 'उग्रकुल,' मन्त्री आदि को ‘भोगकुल,' मित्र-गण 'राजन्यकुल' और शेष सभी क्षत्रियकुल' के कहलाये । इस प्रकार व्यवहार-नीति का प्रवर्तन किया । यों अनेक प्रकार की सुव्यवस्था से यह भरत-क्षेत्र प्रायः महाविदेह क्षेत्र के समान हो गया। इस प्रकार आदि नरेश ने तिरसठ लाख पूर्व तक राज्य का पालन किया।
प्रभु को वैराग्य और देवों द्वारा उद्बोधन
एक बार वनिता के उद्यान में बसंतोत्सव मनाया जा रहा था। परिवार के अनुरोध से आप भी उसमें सम्मिलित हुए। वहाँ लोगों की मोहलीला--खेल-कूद, हँसी-मजाक, नत्य-गान आदि विकारवर्धक चेष्टा देख कर आपको विचार हुआ कि-ऐसे उत्सव तो मैने पहले कभी कहीं देखे हैं। ऐसा विचार आते ही अवधिज्ञान के उपयोग से अनुत्तर विमान और उससे भी पूर्व के भव देखे और पूर्व के भोगे हुए सुख तथा पाला हुआ चारित्र साक्षात् दिखाई दिया। मोह के कटु विपाक का विचार करते हुए प्रभु को वैराग्य उत्पन्न हो गया। वे संसार से विरक्त हो गए । भगवान् के विरक्त होने पर, ब्रह्म देवलोक के अंत में रहने वाले--१ सारस्वत २ आदित्य ३ वन्हि ४ अरुण ५ गर्दतोय ६ तुषिताश्व ७ अव्याबाध ८ मरुत और ६ रिष्य--ये नौ प्रकार के लोकांतिक देव, प्रभु के समीप उपस्थित हए और परम विनीत हो कर नम्र निवेदन करने लगे--
"हे प्रभु ! बहुत लम्बे काल से भरत-क्षेत्र में से नष्ट हुए मोक्षमार्ग रूपी धर्मतीर्थ का प्रवर्तन कर के भव्य जीवों पर उपकार करें। आपने लोकव्यवस्था कर के जनता का ऐहिक उपकार तो कर दिया और नीति प्रचलित कर दी। अब धर्मतीर्थ को चला कर
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