Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
तीर्थकर चरित्र
चक्र-रत्न की पूजा की। उसके आगे चांदी के चावलों से अष्ट-मंगल का आलेखन किया । उसके आगे उत्तम द्रव्यों का धूप दिया। उसके बाद महाराज ने चक्र को तीन प्रदक्षिणा दी और सात-आठ चरण पीछे हट कर, भूमि पर बैठ कर प्रणाम किया तथा वहाँ रह कर अठाई-महोत्सव किया। इसके बाद हस्ति-रत्न पर आरूढ़ हो कर सेना के साथ दिग्विज के लिए पूर्व-दिशा की ओर प्रस्थान किया । महाराज के प्रस्थान करते ही वह यक्षाधिष्ठित चक्र-रत्न, सेना के आगे चलने लगा। फिर दण्ड-रत्न को धारण करने वाला 'सुषेण' नाम का सेनापति-रत्न, उत्तम अश्व-रत्न पर सवार हो कर आगे चलने लगा। पुरोहितरत्न भी महाराजा के साथ हो गया। विशाल सेना के लिए भोजनादि की सुव्यवस्था करने वाला 'गाथापति-रत्न' तथा सेना के पड़ाव (मार्ग में ठहरने योग्य सुखदायक आवास) का प्रबन्ध करने वाला 'वाद्धिकी-रत्न' भी सेना के साथ हुआ । इसी प्रकार चर्म-रत्न, छत्र-रत्न, मणि-रत्न, कांकिणी-रत्न और खड्ग-रत्न भी नरेश के साथ रहे । सारी सेना चक्र-रत्न का अनुगमन करने लगी। प्रतिदिन एक-एक योजन प्रमाण चल कर चक्र-रत्न ठहर जाता और वहीं सेना का पड़ाव हो जाता । इस प्रकार सेना चलते-चलते गंगानदी के दक्षिण तट पर पहुँची । वहाँ सेना का पड़ा हुआ । सेना के प्रत्येक सैनिक और हस्ति आदि पश के खाने-पीने और अन्य आवश्यक सामग्री को उत्तम व्यवस्था थी। वहाँ से प्रयाण कर के समुद्र-तट पर 'मागध तीर्थ' के निकट पहुँचे । वहाँ पड़ाव की सुव्यवस्था हई । महाराजा के आवास के निकट एक पौषधशाला का भी निर्माण हुआ। महाराजा पौषधशाला में पधारे और मागध तीर्थ-कुमार देव की आराधना करते हुए विधिवत् तेले का तप किया । तप पूर्ण होने पर महाराजा भरत, स्नानादि से निवृत हो कर रथ पर सवार हुए और समद्र की ओर प्रस्थान किया। रथ की नाभि-धुरी तक समुद्र के पानी में पहुँचने के बाद रथ को खडा किया और महाराजा ने धनुष उठाया, उस पर नामाश्रित बाण चढा कर मागध तीर्थाधिपति की ओर छोड़ा । वह बाण, सूर्य के समान चमकता, आग की चिनगारिये छोडता और विद्युत के समान धारा बिखेरता हुआ तीव्र गति से बारह योजन चल कर मागध तीर्थ में, मागधाधिपति की सभा में गिरा । अचानक घटी इस घटना को देख कर अधिपति देव एकदम कोपायमान हो गया और भयंकर क्रोध युक्त बोला
___ "कौन है यह मृत्यु का ग्रास ? किसका जीवन समाप्त होना चाहता है, जो मेरा अपमान कर रहा है ? देखता हूँ मै उस अभिमानी को"--इस प्रकार बोलता हुआ वह मागध तीर्थाधिपति देव, खड्ग ले कर उठा और उस बाण को देखने के लिए चला ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org