Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थकर चरित्र
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इस प्रकार स्वप्नों का अर्थ बता कर और प्रणाम कर के सभी इन्द्र अपने-अपने स्थान पर गये । महामाता श्रीमती मरुदेवा, इन्द्रों के मुख से स्वप्न का फल सुन कर परम हर्षित हुई।
गर्भ सुखपूर्वक बढ़ने लगा । गर्भ के अनुकूल प्रभाव से मातेश्वरी के शरीर की शोभा, कान्ति और लावण्य भी बढ़ने लगा तथा नाभिराजा की ऋद्धि, यश, प्रभाव और प्रतिष्ठा में भी वृद्धि होने लगी। प्रकृति भी कुछ अनुकूल हो गई, जिससे कल्पवृक्षों की फलदा शक्ति में भी कुछ बृद्धि हुई। मनुष्यों और पशु-पक्षियों की प्रकृति में भी कुछ सौमनस्य की वृद्धि हुई।
आदि तीर्थंकर का जन्म
गर्भकाल पूर्ण होने पर चैत्र-कृष्णा अष्टमी की अर्धरात्रि को सभी ग्रह उच्च स्थान में रहे हए थे और चन्द्रमा उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में था, तब परम सौभाग्यवती महादेवी मरुदेवा की कुक्षि से एक युगल का सुखपूर्वक जन्म हुआ। जिस प्रकार देवों की उपपात शय्या में देव का जन्म होता है, उसी प्रकार रुधिरादि वजित, कर्मभूमि के आदि मानव, आदिकुमार का जन्म हुआ। दिशाएँ प्रफुल्ल हुई । जनसमुदाय में स्वभाव से ही आनन्द का वातावरण निर्मित हो गया । ऊर्ध्व, अधो और तिर्यक् लोक में उद्योत हो गया। जैसे स्वर्ग अपने आप हर्ष से गर्जना करता हो, वैसे आकाश में बिना बजाये ही मेघ के समान गम्भीर शब्द वाली दुंदुभि बजने लगी। उस समय नारक जीवों को भी क्षणभर के लिए अपूर्व सुख की प्राप्ति हुई । भूमि पर चलते हुए मंद-मंद पवन ने पृथ्वी पर की रज और कचरा दूर कर के सफाई कर दी। मेघ सुगन्धित जल की वृष्टि करने लगे।
दिशाकुमारी देवियों द्वारा शौच-कर्म
इस समय अपने आसन चलायमान होने से अधोलोकवासिनी आठ दिशाकुमारिय तत्काल भगवान् के जन्म स्थान पर भाई और भावी आदि-तीर्थकर तथा उनकी माता को तीन बार प्रदक्षिणा कर के वन्दना की और अपना परिचय देती हुई कहने लगी;--
"हे जगज्जननी ! हे विश्वोत्तम लोक-दीपक महापुरुष को जन्म देने वाली महा • माता ! हम अधोलोक में रहने वाली आठ दिशाकुमारियाँ हैं । हम अवधिज्ञान से जिनेश्वर
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