Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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इन्द्रों का आगमन और जन्मोत्सव
प्रभु का जन्म होने पर प्रथम स्वर्ग के अधिपति श्री सौधर्मेन्द्र का आसन चलायमान हुआ। अवधिज्ञान से भगवान् का जन्म जान कर उनके हर्ष का पार नहीं रहा । वे आसन से नीचे उतरे और भगवान् की दिशा में सात-आठ वरण चल कर नीचे बैठे। दाहिने घुटने को नीचे टिका कर बायें घुटने को खड़ा रखते हैं और दोनों हाथ जोड़ कर मस्तक झुकाये हुए भगवान् की स्तुति करते हैं । स्तुति करने के बाद वे अपने आज्ञाकारी ‘हरिणैग मेषी' देव को आज्ञा देते हैं कि--तुम ‘सुघोषा' नाम की अपनी विशाल घंटा को बजा कर, उद्घोषणा कर के सभी देव-देवियों को भगवान् के जन्मोत्सव में सम्मिलित होने की सूचना दो । हरिणगमेषी देव, इन्द्र को आज्ञा शिरोधार्य कर के सुघोषा घंटा के पास आता है और उस पर तीन बार प्रहार कर के उद्घोषणा करता है कि--
"हे देवों और देवियों ! ध्यान दे कर सुनो ;'
"जम्बूद्वीप के दक्षिण भरतक्षेत्र में भगवान् आदिनाथ का जन्म हुआ है । श्री सौधर्मेन्द्र, तीर्थंकर भगवान् का जन्मोत्सव करने के लिए जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में पधारेंगे। इन्द्र महाराज की आज्ञा है कि सभी देव-देवियाँ भगवान् का जन्मोत्सव करने के लिए आवें।"
सुघोषा घंटा का गंभीर नाद होते ही बत्तीस लाख विमानों में रही हुई सभी घण्टाएँ गरज उठी। घण्टानाद सुनते ही आमोद-प्रमोद में आसक्त हुए देव-देवी स्तब्ध हो कर सावधान हो गये। उनके मन में जिज्ञासा हुई--"क्या बात है ? इस समय कौनसी स्थिति बनने वाली है ? इन्द्र का क्या आदेश है ?" इतने में इन्द्र के सेनापति हरिणगमेषी देव द्वारा इन्द्र की आज्ञा उनके कानों में पड़ती है । इन्द्र की आज्ञा सुनते ही कई देव तो भगवान पर के अपने राग के कारण प्रसन्नतापूर्वक जाते हैं। कई देव, इन्द्र की आज्ञा का पालन करने के लिए जाते हैं । कुछ देवांगनाओं द्वारा उत्साहित हो कर जाते हैं और कुछ मित्रों को प्रेरणा से जाते हैं । इस प्रकार देवगण इन्द्र के पास उपस्थित होते हैं।
इन्द्र अपने 'पालक' नाम के आज्ञाकारी देव को एक असंभाव्य और अप्रतिम विमान की रचना करने का आदेश देता है । आज्ञाकारी देव, एक ऐसे विशाल विमान की रचना करता है, जिसमें हजारों स्तंभ खिड़कियाँ ध्वजाएँ आदि हैं । सुन्दर चित्रों, तोरणों और वन्दनवारों से सुशोभित है । मध्य में प्रेक्षामण्डप (अत्यन्त आकर्षक दश्यों से परिपूर्ण प्रदर्शनी) बनाया । उस प्रेक्षामंडप के मध्य में मणिमय पीठिका बनाई । उस पर सिंहासन बनाया । उसके वायव्य उत्तर तया उत्तर-पूर्व दिशा के मध्य में इन्द्र के
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